लफ्ज़ ए उल्फ़त के मआनी से जुदा होना पड़ा,
मिसरा ए ऊला को सानी से जुदा होना पड़ा।
तितलियाँ हँस के कहीं ख़ुद ही ज़मींदोज़ हुईं,
मछलियों को कहीं पानी से जुदा होना पड़ा।
फिर किसी शाह ने बनवाई उसूलों की सलीब,
फिर किसी राजा को रानी से जुदा होना पड़ा ।
दिल के रिश्तों के तक़द्दुस की हिफ़ाज़त के लिए
ख़ुद मुझे अपनी कहानी से जुदा होना पड़ा।
सिर्फ़ दो वक़्त की रोटी के लिए दुनिया में,
कितने जिस्मों को जवानी से जुदा होना पड़ा।
इस से पहले कि वो बन जाती समंदर की खुराक़
बहती नदिया को रवानी से जुदा होना पड़ा।
सुब्ह की कोख़ से सूरज के तुलूअ होते ‘शिखा’
चाँद को रात की रानी से जुदा होना पड़ा ।
दीपशिखा ‘सागर’, छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश.