सहरसा : पांच अप्रैल को बीएनएमयू कुलसचिव द्वारा एमएलटी कॉलेज सहरसा और एच एस कॉलेज उदाकिशुनगंज के तत्कालीन प्राचार्यों से जुड़े वायरल ऑडियो,वीडियो प्रकरण की जांच को बनी जांच कमिटी को अधिसूचना जारी करने के तुरंत बाद ही वाम छात्र संगठन एआईएसएफ के बीएनएमयू प्रभारी हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने विश्वविद्यालय की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि हमेशा विवादों से घिरे बीएनएमयू ने एमएलटी कॉलेज सहरसा में एडमिशन को लेकर प्रधानाचार्य से जुड़े मामले के उजागर होने के दो माह से कहीं अधिक पहले ही अनुशासन समिति की बैठक कर जांच कमिटी बना मामले के जांच का हैरतअंगेज निर्णय ले लिया।
विश्वविद्यालय की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करते हुए राठौर ने कहा कि एमएलटी कॉलेज का वायरल ऑडियो का मामला पिछले साल के दिसम्बर माह के दूसरे पखवाड़े में उजागर हुआ फिर बीएनएमयू की अनुशासन समिति ने उसी वर्ष लगभग ढाई माह पहले ही बैठक करके किस पूर्वानुमान के तहत जांच कमिटी बनाने और जांच का निर्णय ले लिया। जो बीएनएमयू घटना के बाद भी अनगिनत साक्ष्य होने पर जांच व कारवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाता वह घटना से पहले ही जांच कमिटी बनाने का अजूबा फैसला ले खुद को मजाक बना देता है।छात्र नेता राठौर इस बचकाना और विवादास्पद हरकत का मूल कारण विश्वविद्यालय के वरीय पदाधिकारियों का निजी हित साधने में माहिर चापलूसों से घिरा होना भी बताया।
वहीं उन्होंने जारी अधिसूचना के कई अन्य बिंदुओं पर भी सवाल खड़ा करते हुए कहा कि चार सदस्यीय जांच टीम में सदस्य सचिव का उल्लेख नहीं है ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जांच रिपोर्ट तैयार कौन करेगा साथ ही जांच टीम को रिपोर्ट जमा करने के लिए कोई निर्धारित समय सीमा तय नहीं की गई है ।इससे यह साफ पता चलता है कि जांच टीम बना मामले को लंबा खींचने व रफा करने का इतिहास रखने वाले बीएनएमयू ने इस बार भी वही चाल चली है। निकट भविष्य में जब रिपोर्ट की मांग उठेगी तब सदस्य सचिव की चर्चा नहीं होने व निर्धारित समय सीमा नहीं होने का बहाना कर कई राउंड में जांच को लंबा कर मामले की लीपापोती की का सके बिल्कुल वैसे ही जैसे बी एड ऑन स्पॉट एडमिशन प्रकरण में निर्धारित दस दिन की जगह एक साल दो माह बाद भी रिपोर्ट नहीं देकर जांच को लंबा खींचा जा रहा है।
वाम छात्र नेता राठौर इस हरकत पर एआईएसएफ बीएनएमयू की ओर से नाराजगी जताते हुए मांग किया कि विश्वविद्यालय स्पष्ट करे कि किन हालातों में घटना से पहले जांच का निर्णय हो जाता है वहीं अविलंब जारी अधिसूचना में सुधार कर सदस्य सचिव व निर्धारित समय सीमा तय करते हुए उक्त ऑडियो, वीडियो एडमिशन प्रकरण की जांच कर सच्चाई को सामने लाया जाए जिससे हकीकत पता चले साथ ही दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की पहल भी हो जिससे विश्वविद्यालय की धूमिल हो रही प्रतिष्ठा को सम्हाला जा सके।