बेगूसराय: इस खूबसूरत जिन्दगी के कैनवास पर जहां एक ओर मिट्टी की खुशबू से सराबोर खुशी के रंग बिखरे पड़े हैं। दूसरी तरफ इन्हीं मिट्टियों के समायोजन से तैयार कलाकृतियों से एक काली छाया भी परिलक्षित हो रही है। लेकिन जब जज्बा हो कुछ कर गुजरने की तो मंजिल दूर होते हुए भी पास नजर आने लगती है और उड़ान पंखों से नहीं, हौसलों से भरी जाती है।
ऐसी ही एक कहानी है बेगूसराय जिला के सूदूरवर्ती बखरी से सटे महादलित और अति पिछड़ा मुहल्ला सुग्गा मुसहरी के रहने वाले दिव्यांग रामलगन की। जो कि विपरीत परिस्थितियों में भी अपने शौक को जिन्दा रख उसे एक नया आयाम देने में लगातार जुटा हुआ है। मूक-बधिर दिव्यांग राम लगन को मिट्टी और बेकार पड़े समानों की कलाकृति निर्माण का अद्भुत हुनर ईश्वर ने दिया है। रामभरोस सदा का पुत्र राम लगन ना तो बोल सकता है और ना ही सुन सकता है। लेकिन मानसिक और बौद्धिक दिव्यांगता के बाद भी मिट्टी से बनाई गई इसकी कलाकृतियों को देख कर हर कोई दंग रह जाता है।
चंद्रभागा नदी के किनारे स्थित उजान बाबा स्थान के प्राकृतिक छटा में अपनी रचनात्मक कला में निखार लाने वाला रामलगन बगैर किसी प्रशिक्षण के मिट्टी और बेकार फेंकी गई चीजों से जेसीबी, ट्रैक्टर, ट्रक, ट्रेन, बाइक, हल, जनरेटर समेत दर्जनों समान काफी कुशलता से बनाता है। गीली मिट्टी से बना कर तैयार की गई मूर्तियां इतनी जीवंत दिखती है कि मानो अब बोल और चल पड़ेगी। गरीबी के कारण बचपन बगैर बाजारू खिलौना के बीता। लेकिन अब हाथ और हुनर के संयोग से बनी चीजें लोगों का मन मोह लेती है।
गुमनामी के अंधेरे में कैद राम लगन ने इस सरस्वती पूजा के अवसर पर हेमोग्लोबीन का स्तर तीन पर रहने के बाद भी दो ऐसी प्रतिमा बनाकर पूजा किया, जिसमें रंग भले ही नहीं चढ़ा था। लेकिन इसने कुछ ऐसा हुनर दिखाया, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सिर्फ कच्ची मिट्टी से बनी अद्भुत आकृति की प्रतिमा जीवंत नहीं होने के बावजूद भी बहुत कुछ कह रही थी। हर कोई यह कहने को विवश हो जाता है कि काश इसके बौद्धिकता की पहचान करने वाला नरेन्द्र मोदी जैसा जौहरी मिल जाता तो इसकी प्रतिभा में और निखार आ जाता।
लोगों को उम्मीद है कि एक ना एक दिन देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और किसी बड़े कॉरपोरेट की नजर में जरुर राम लगन आएगा और उसे छांव का प्लेटफॉर्म मिलेगा। अपने बौद्धिकता से बनाई गई कलाकृति से लोगों का दिल जीतने पर मिली मदद तथा खुद जंगल से काटकर लाया गया ताजा दातुन बेचकर जीविकोपार्जन में जुटा राम लगन स्वाभिमानी इतना है कि मेहनताना के सिवा उसे कुछ भी स्वीकार नहीं है।
रहने के लिए घर नहीं था तो भी किसी से मांगा नहीं और ठंड शुरू होने पर श्मसान में फेंका गया कपड़ा और बेड लाकर रहने लायक घर बना लिया। अपने हंसी और हुनर के कमाल से राम लगन बगैर बोले ही कह रहा है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है, यह ना तो रुप देखकर आती है और ना ही शिक्षा या धन की बदौलत।
भले लक्ष्मी ने इस गुदरी के लाल पर अपनी रहमत नहीं बरसाई है, लेकिन सरस्वती और विश्वकर्मा का ऐसा भरपूर आशीर्वाद है जो किसी को भी अचरज में डाल दे। राम लगन जैसे कई विकलांग मंदिरों के सामने, सड़क पर, ट्रेनों में भीख मांगते, अपनी दीनता, विकलांगता का रोना रोते मिल जाएंगे लेकिन यह शख्स उन सबों से जुदा है, ये बड़े स्वाभिमानी हैं जो किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते।
मॉडल गांव प्रोजेक्ट पर काम कर रहे विश्वमाया चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. रमण कुमार झा कहते हैं कि शारिरिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक, सामुदायिक तथा पारिवारिक पिछड़ेपन के बावजूद राम लगन की प्रतिभा हैरान करने वाली है। अगर समाजिक बौद्धिकता से एक प्लेटफॉर्म दे दिया जाए तो अद्भुत कलाकारी और कारीगरी का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत हो सकता है। क्योंकि खुद बोल नहीं सकता, लेकिन जीवंत दिखती है उसकी कलाकृतियां।
(डॉ रमण कुमार झा)