मैथिली सिनेमा और भाषाई मोर्चे को दो जिलों से निकलना होगा ”एन मंडल”
भारत सरकार साहित्य अकादमी के परिसंवाद में युवा फिल्म निर्देशक एन मंडल ने कहा की मैथिली सिनेमा आधी सदी से भी अधिक समय से अपनी यात्रा पर है, दुर्भाग्य है की मैथिली सिनेमा एक व्यावसायिक बाजार विकसित नहीं कर पाया है
- मैथिली सिनेमा और भाषाई मोर्चे को दो जिलों से निकलना होगा
Entertainment : भारत सरकार साहित्य अकादमी (Sahitya Akademi), नई दिल्ली एवं ईस्ट एंड वेस्ट टीचर ट्रेनिंग कॉलेज सहरसा द्वारा एक दिवसीय परिसंवाद ‘’मैथिली सिनेमा और साहित्य’’ में युवा फिल्म निर्देशक एन मंडल (N Mandal) ने कहा की मैथिली सिनेमा (Maithili Cinema) आधी सदी से भी अधिक समय से अपनी यात्रा पर है, दुर्भाग्य है की मैथिली सिनेमा एक व्यावसायिक बाजार विकसित नहीं कर पाया है। मैथिली भाषा का अपना प्रचुर साहित्य और अनूठी संस्कृति है, जरूरत इस बात की है कि इसका अच्छे से फिल्मांकन और विपणन किया जाए।
मैथिली साहित्य की विभिन्न विधाएँ तथाकथित मानक मैथिली में उलझी हुई हैं और मिथिला के लोगों के बीच भी प्रसिद्ध नहीं हैं। आपको बता दे श्री एन मंडल आगे बताते हुए कहा की मैथिली सिनेमा कुछ जिलों तक ही सीमित हैं और मैथिली की अधिकांश फिल्में और भाषाई मोर्चे भी उलझी हुई हैं, जबकि हमारे पास भारत और नेपाल का विशाल क्षेत्र मिथिला है। हमें उन कारणों की तलाश करनी होगी कि क्यों मैथिली सिनेमा मिथिला के दो जिलों तक ही सीमित है।श्री एन मंडल ने कहा है कि शुद्ध मैथिली (Maithili) और अशुद्ध बोली की बात ने मैथिली के सन्दर्भ में इतना भ्रम फैला दिया है कि सिनेमा भी इसके प्रभाव से मुक्त नहीं हो सका है। अब जरूरत इस बात की है कि मैथिली सिनेमा संपूर्ण मिथिला का प्रतिनिधित्व करे, संवाद भाषा के स्तर पर हो, फिल्म के पात्र मिथिला के विभिन्न क्षेत्रों से हों और उसी के अनुसार उस क्षेत्र की भाषा शैली पात्रों के संवाद में आये। यदि ऐसा किया गया तो समाज के हर वर्ग के लोग निश्चित रूप से मैथिली फिल्मों को अपनी फिल्म मानेंगे और एक व्यावसायिक माहौल अपने आप बन जाएगा।
इसी तरह मैथिली सिनेमा की लोकप्रियता बढ़ाने और एक नई शुरुआत करने के लिए मिथिला के विभिन्न क्षेत्रों से अभिनेताओं और अभिनेत्रियों का चयन किया जाना चाहिए और विभिन्न जिलों के उपयुक्त स्थानों का फिल्मांकन में उपयोग किया जाना चाहिए।मैथिली साहित्यिक परिदृश्य में ऐसी कई रचनाएँ हैं जिनकी पटकथा तैयार की जा सकती है और उन पर फ़िल्में बनाई जा सकती हैं। इस दिशा में भी पहल की जरूरत है। एक बात ध्यान रखने वाली है कि हमें व्यावसायिक विकल्प तलाशने चाहिए लेकिन मैथिली सिनेमा को अश्लीलता की ओर बिल्कुल नहीं ले जाना चाहिए।जब मैथिली सिनेमा संवाद और परिवेश की दृष्टि से दरभंगा, पूर्णिया, बेगुसराय, समस्तीपुर जनकपुर आदि सभी जगहों को शामिल होने लगेगा तो मैथिली सिनेमा अपने आप सफलता की ओर बढ़ने लगेगा। सीतामढी मिथिला का सबसे बड़ा फिल्म व्यवसाय केंद्र है, लेकिन मैथिली फिल्में आज तक वहां नहीं पहुंच सकी हैं. इसका कारण और निवारण खोजना आवश्यक है।
आपको बता दे ये सारी बाते युवा फिल्म निर्देशक एंव एडिटर में भारत सरकार साहित्य अकेडमी का कार्यकर्म में की, एन मंडल प्रथम सत्र के वक्ता के रूप में थे, एन मंडल समस्तीपुर जिला बिहार से है।