समस्तीपुर / पूसा : डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पादप रोग व नेमेटोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. एस के सिंह ने सहजन का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा बताते हुए बताया कि इसकी खेती किसानों के लिए लाभदायक हो सकती है। इसकी खेती कम लागत में की जा सकती है और इससे उनकी आमदनी में वृद्धि हो सकती है। उन्होंने बताया कि बिहार में सहजन की खेती संभव है और इसे साल भर में की जा सकता है। हाल ही में, एक साल में दो बार फलने वाला वार्षिक प्रभेद तैयार किया गया है, जिससे किसानों को अधिक लाभ हो सकता है।
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सहजन की प्रमुख प्रजातियों में पीकेएम 1, पीकेएम 2, कोयेंबटूर 1 और कोयेंबटूर 2 उल्लेखनीय हैं। इसका उत्पादन दियारा क्षेत्र के किसानों के लिए एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, साल में दो बार फलने वाले सहजन के प्रजातियों के लिए 6 से 7.5 पीएच मान वाली बलुई और दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसमें प्रोटीन, लवण, लोहा, विटामिन-बी, और विटामिन-सी की प्रचुर मात्रा मिलती है। विशेषज्ञों के अनुसार, आजकल सहजन की खेती दुधारू पशुओं के चारा के रूप में भी की जा रही है। सहजन के छाल, पत्ती, बीज, और जड़ का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। इससे किसान खेती से स्थायी आय कमा सकते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है।
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