कविता

Poetry; शायद तुम ही हो

नदियों की कलकल में तुम हो
सागर की छल छल में तुम हो,
देख रही हूं लहर लहर के–
यौवन की हलचल में तुम हो ।

फूल फूल में….. महका करते
खग कलरव कर चहका करते,
तेरे रूप …..माधुरी का रस–
पीकर भंवरे…. बहका करते ।

पवन झकोरे…. तन छू जाते
जान अकेली.. मन बहलाते ,
आंचल भर सुधियों की थाती
बनकर मेघ.. तुम्हीं बरसाते।

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झूम झूम तरु ..करते स्वागत
गीत सुनाते…….. तेरा आगत
प्रियतम शायद वह तुम ही हो
पर दिखते ना.. है मन आहत ।

शायद तुम ही हो… मनभावन
तुमसे ही है रिमझिम….सावन,
कण-कण में छवि देख तुम्हारी
‘रश्मि’आज है बहुत मुदित मन ।

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डॉ० स्वदेश मल्होत्रा ‘रश्मि’

Ashok Ashq

Ashok ‘’Ashq’’, Working with Gaam Ghar News as a Co-Editor. Ashok is an all rounder, he can write articles on any beat whether it is entertainment, business, politics and sports, he can deal with it.

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