कविता
Poetry; शायद तुम ही हो
नदियों की कलकल में तुम हो
सागर की छल छल में तुम हो,
देख रही हूं लहर लहर के–
यौवन की हलचल में तुम हो ।
फूल फूल में….. महका करते
खग कलरव कर चहका करते,
तेरे रूप …..माधुरी का रस–
पीकर भंवरे…. बहका करते ।
पवन झकोरे…. तन छू जाते
जान अकेली.. मन बहलाते ,
आंचल भर सुधियों की थाती
बनकर मेघ.. तुम्हीं बरसाते।
झूम झूम तरु ..करते स्वागत
गीत सुनाते…….. तेरा आगत
प्रियतम शायद वह तुम ही हो
पर दिखते ना.. है मन आहत ।
शायद तुम ही हो… मनभावन
तुमसे ही है रिमझिम….सावन,
कण-कण में छवि देख तुम्हारी
‘रश्मि’आज है बहुत मुदित मन ।