धर्म-कर्म : लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ ‘Chhath’ मंगलवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो रहा है। इस पावन पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को होती है, जिसमें व्रती गंगा स्नान कर भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर नहाय-खाय का प्रसाद बनाते हैं। इसमें अरवा चावल, चना दाल, कद्दू की सब्जी और आंवले की चटनी का भोग भगवान को अर्पित कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
इस वर्ष छठ महापर्व अत्यंत शुभ योग और नक्षत्र में पड़ रहा है। मंगलवार सुबह 8:37 बजे ज्येष्ठा नक्षत्र समाप्त होगा, और इसके बाद मूल नक्षत्र प्रारंभ होगा, जो बुधवार सुबह 10:13 बजे तक रहेगा। ज्योतिषाचार्य प्रेम सागर पांडेय के अनुसार, मंगलवार को सुबह 11:16 बजे से अतिगंड योग समाप्त हो जाएगा और सुकर्मा योग प्रारंभ होगा। अतः सुबह 11:16 बजे के बाद नहाय-खाय का आयोजन विशेष रूप से शुभ माना जा रहा है।
छठ महापर्व के दूसरे दिन बुधवार को व्रती खरना प्रसाद ग्रहण करेंगे, जो सुकर्मा, घृति और ध्वज योग में संपन्न होगा। इस दिन गुड़, ईख के रस से बनी खीर, रोटी और मूली का प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। खरना के साथ ही 36 घंटे का निर्जला-निराहार उपवास प्रारंभ हो जाएगा, जिसमें व्रती बिना जल और भोजन के व्रत रखते हैं।
इस वर्ष व्रतियों को अद्वितीय संयोग प्राप्त हुआ है, जिसमें अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य दोनों को एक ही नक्षत्र ‘उत्तराषाढ़ा’ में अर्घ्य देने का अवसर मिलेगा। ज्योतिषाचार्य पीके युग के अनुसार, यह संयोग कई दशकों के बाद बन रहा है, जिसे अत्यंत कल्याणकारी माना जाता है। व्रती गुरुवार को सूर्यास्त से आधा-एक घंटा पहले डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे, और शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करेंगे।
छठ महापर्व में नहाय-खाय का विशेष महत्व है। व्रत प्रारंभ करने से पहले शरीर और मन की शुद्धि के लिए नहाय-खाय का आयोजन किया जाता है। इस दिन व्रती स्नान करते समय चार दिवसीय अनुष्ठान का संकल्प लेते हैं और प्रसाद के रूप में चना दाल, कद्दू आदि ग्रहण कर शरीर को उपवास के लिए तैयार करते हैं। यहाँ क्लिक कर विडियो देखें