महाराणा प्रताप वंशजों में संपत्ति विवाद: 40 साल पुराने झगड़े ने फिर लिया तूल
महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच संपत्ति विवाद: 40 साल पुराना झगड़ा फिर उभर कर आया सामने.
राजस्थान के मेवाड़ में महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच चल रहा संपत्ति विवाद ए बार फिर खुलकर सामने आ गया है। इस विवाद की जड़ें लगभग 40 साल पुरानी हैं, लेकिन हाल ही में हुए घटनाक्रमों ने इसे और गहरा कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के विधायक और महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ के राजतिलक के बाद यह विवाद चर्चा का केंद्र बन गया है।
विवाद की ताजा शुरुआत
महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल ट्रस्ट और एकलिंगजी ट्रस्ट के तहत आने वाली संपत्तियों को लेकर विवाद लंबे समय से चल रहा है। यह विवाद तब बढ़ा, जब 25 नवंबर को चित्तौड़गढ़ के ऐतिहासिक फतेह प्रकाश महल में विश्वराज सिंह मेवाड़ का पगड़ी दस्तूर (राजतिलक) आयोजित हुआ। यह परंपरा उदयपुर सिटी पैलेस और एकलिंगजी मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ पूरी होती है।
हालांकि, इस बार उन्हें उदयपुर सिटी पैलेस में प्रवेश करने से रोक दिया गया। ट्रस्ट ने एक नोटिस जारी कर किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति को मंदिर या पैलेस में प्रवेश देने से इनकार कर दिया।
पैलेस के बाहर हंगामा और प्रशासन की कार्रवाई
विश्वराज सिंह अपने समर्थकों के साथ उदयपुर पहुंचे, लेकिन पुलिस बैरिकेडिंग के कारण उन्हें पैलेस के बाहर रोक दिया गया। इस दौरान उनके समर्थकों और पुलिस के बीच तीखी नोकझोंक हुई। कुछ समय बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई और दोनों पक्षों के बीच पथराव की नौबत आ गई।
आखिरकार, विश्वराज सिंह को धूणी दर्शन किए बिना ही वापस लौटना पड़ा। इसके बाद प्रशासन ने विवादित हिस्से पर कुर्की का नोटिस चस्पा कर दिया और सिटी पैलेस के आसपास भारी पुलिस बल तैनात कर दिया।
लक्ष्यराज सिंह का आरोप और सफाई
इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए, अरविंद सिंह मेवाड़ के बेटे लक्ष्यराज सिंह ने विश्वराज सिंह पर गुंडागर्दी का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि कानून के तहत जो भी कार्रवाई होनी चाहिए, वह अदालत के जरिए होनी चाहिए।
लक्ष्यराज सिंह ने कहा, “मंदिर शक्ति प्रदर्शन की जगह नहीं है। यह प्रार्थना का स्थान है।” उन्होंने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि पुलिस ने अनुशासनहीनता की घटनाओं को रोकने में विफलता दिखाई।
संपत्ति विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ
यह विवाद 1983 में शुरू हुआ था, जब महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ के बेटे महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। महेंद्र सिंह का आरोप था कि उनके पिता संपत्ति को बेचना और लीज पर देना शुरू कर चुके थे, जो उन्हें स्वीकार्य नहीं था।
भगवत सिंह ने नाराज होकर अपनी संपत्तियों की जिम्मेदारी छोटे बेटे अरविंद सिंह को सौंप दी। इसके बाद महेंद्र सिंह को प्रॉपर्टी और ट्रस्ट से अलग कर दिया गया।
कोर्ट का फैसला और लंबी कानूनी लड़ाई
37 साल तक चली सुनवाई के बाद 2020 में उदयपुर जिला अदालत ने फैसला सुनाया कि संपत्तियों को चार हिस्सों में बांटा जाएगा। इसमें एक हिस्सा भगवत सिंह को और बाकी तीन हिस्से उनके बेटों और बेटी को मिलेंगे।
हालांकि, इस फैसले को लागू होने से पहले मामला राजस्थान हाईकोर्ट में चला गया। 2022 में हाईकोर्ट ने जिला अदालत के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि अंतिम फैसला आने तक संपत्तियों पर अरविंद सिंह का अधिकार रहेगा।
ट्रस्ट की भूमिका
संपत्ति विवाद का एक बड़ा हिस्सा महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल ट्रस्ट और एकलिंगजी ट्रस्ट के अधिकारों से जुड़ा है। दोनों ट्रस्ट सिटी पैलेस और एकलिंगजी मंदिर का कानूनी स्वामित्व रखते हैं। भगवत सिंह ने 1955 में एकलिंगजी ट्रस्ट की स्थापना की थी।
अरविंद सिंह मेवाड़ इस ट्रस्ट के अध्यक्ष और प्रबंध ट्रस्टी हैं। दूसरी ओर, विश्वराज सिंह का कहना है कि उन्हें मंदिर और पैलेस में प्रवेश से रोकना पारंपरिक और कानूनी रूप से गलत है।
राजशाही का अंत और वर्तमान स्थिति
भारत में 1947 के बाद राजशाही का धीरे-धीरे अंत हो गया। 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स खत्म कर दिया, जो पूर्व शासकों को वित्तीय लाभ के रूप में दिया जाता था।
इसके बावजूद कई राजघरानों ने अपनी संपत्तियों को संरक्षित रखा। हालांकि, संपत्ति के अधिकारों को लेकर राजघरानों के भीतर विवाद आम हो गए।
आगे की राह
उदयपुर प्रशासन ने सिटी पैलेस के विवादित हिस्सों की निगरानी के लिए रिसीवर नियुक्त कर दिया है। दोनों पक्षों के बीच बातचीत जारी है, लेकिन कोई ठोस समाधान निकलने की संभावना फिलहाल नजर नहीं आ रही।
महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच यह विवाद न केवल परिवार की अंदरूनी समस्या है, बल्कि ऐतिहासिक धरोहरों और परंपराओं के संरक्षण के लिए भी गंभीर चुनौती है।
यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कोर्ट का अंतिम फैसला किसके पक्ष में जाता है और यह विवाद ऐतिहासिक संपत्तियों के भविष्य को कैसे प्रभावित करता है।
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