Darbhanga : त्रेता युगीन अंकुरित बाबा द्रव्येश्वरनाथ शिव मंदिर देवकुली धाम दरभंगा जिलान्तर्गत बिरौल प्रखण्ड के देवकुली धाम में द्रव्येश्वरनाथ ज्योर्तिलिंग अवतरित हैं। दरभंगा जिला मुख्यालय से चौतीस किलोमीटर की दूरी पर लहेरियासराय-बहेड़ी-सिंघिया-कुशेश्वरस्थान राजपथ के किनारे देवकुली गाम में अवस्थित है।
बाबा द्रव्येश्वरनाथ कामना लिंग के रूप में विख्यात हैं इनकी महिमा निराली है । ज्योर्तिलिंग में अद्भुत रूप शिव व पार्वती रहने के कारण इन्हें लोग अर्द्धनारिश्वर भी कहते हैं । मान्यता है कि पूर्व से ही यहाँ देवी-देवता आधी रात में शिव पार्वती की अराधना करने आते रहे हैं । देवी-देवताओं के आने से मंदिर परिसर में एक प्रकार की अद्भुत सुगंध फैल जाती है, जो आज भी लोग अनुभव करते हैं इनके दर्शनस्पर्शन एवं पूजन से व्यक्ति के जीवन की समस्त मनोकामनायें फलीभूत हो जाती हैं, इसीलिए ये मनोकामना लिंग कहलाते हैं । सभी भावपूर्ण भक्तों की आकांक्षाओं की पूर्ति होने के कारण यहाँ हजारों भक्तों का हर दिन आना-जाना लगा रहता है ।
उस दिन का दृश्य बाबा वैधनाथ धाम के महाशिव रात्रि की भीड़ की याद ताजा करा देता है । नरक निवारण चतुर्दशी के दिन जो व्यक्ति पवित्रता के साथ उपवास रख कर जलाभिषेक करते हैं साथ ही अपने दोषों का पश्चाताप कर शेष जीवन पाक साफ बिताने का संकल्प लेते हैं, वैसे भक्तों पर बाबा द्रव्येश्वरनाथ निश्चय ही अपनी कृपा की वर्षा कर देते हैं और वे धन्य हो जाते हैं । उनके जन्म जन्मान्तर के पाप-परिताप नष्ट हो जाते हैं और वे मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं । बहुत से ऐसे लोग जो असमर्थ होने के कारण बाबा की पूजा या दर्शन नहीं कर पाते हैं, वैसे श्रद्धालुगण बाबा द्रव्येश्वरनाथ का आधिकारिक चित्र लेकर भक्ति भाव से विधि पूर्वक पूजन करें । बाबा का नीर जलाभिषेक किया जललेकर अपने को शिक्त करें तथा बाबा का चित्र स्पर्श करें सदाचार पूर्वक शेष जीवन व्यतीत करने का संकल्प लें । है बाबा द्रव्येश्वरनाथ निश्चय ही ऐसे भक्तों का भी उद्धार कर देते हैं । वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि आदि विशिष्ट अवसरों पर भक्तों की भारी भीड़ होती है ।
मुख्य मंदिर पत्थर से निर्मित है । मंदिर में उत्कृष्ट कारीगरी से अनेक देवी-देवताओं एवं ऋषि-मुनियों के भव्य चित्र बनाये गए हैं । यह मंदिर चौकोर एवं दो महल का बना है । दूसरी मंजिल पर गर्भगृह के गुम्बज के अन्दर शिव परिवार का छोटा किन्तु आकर्षक दर्शनियाँ मंदिर है । इनकी परिक्रमा हेतु लौह-काष्ठ निर्मित रेलिंग से घिरा हुआ चारों हैं ओर बरामदा है । इसमें एक विशिष्ट बात यह है कि नीचे गर्भ गृह से ऊपर झांकने पर शिव परिवार का मंदिर देख सकते हैं और ऊपर से नीचे गर्भ गृह में अवस्थित ज्योतिलिंग का दर्शन भी कर सकते हैं शिव परिवार की परिक्रमा हेतु बने बरामदा की छत के चारों कोण पर छोटे-छोटे मनभावन मंदिर से निर्मित है । मंदिर के पूरब दिशा में दोनों कोण के मध्य में मैया की सवारी सिंह की दो मूर्तियाँ बनी हुई हैं । बीच में मैया का उद्भव-स्थल कमल पुष्प निर्मित है । शिव परिवार के दर्शन करने दूसरी मंजिल पर जाने हेतु मंदिर के उत्तर एवं दक्षिण भाग में सीढ़ियाँ निर्मित हैं । उत्तर दिशा की सीढ़ी से भक्तों के लिए प्रवेश एवं दक्षिण वाली सीढ़ी से निकास का प्रावधान है। उत्तरवारी प्रवेश सीढ़ी में बाँए बाबा की सवारी नन्दी, अंगी एवं दायें माता की सवारी सिंह दर्शनार्थी भक्तों की आगवानी में तत्पर दिखाई पड़ते अनादिकाल से स्थित होने के कारण आज भी भक्तों को बाबा की परिक्रमा हेतु मंदिर में चारों तरफ बरामदे हैं, जिनकी छत के चारों कोण पर चार सुन्दर छोटे-छोटे मंदिर जैसे निर्मित हैं ।
बरामदों में चारो ओर कला कौशल का अत्यंत सुन्दर नमूना भक्तों को दिखाई पड़ता है । गर्भगृह में प्रवेश के लिए पूरब और निकास के लिए पश्चिम दो बार बने हुए है । इनके दायें में चन्द्र और बायें भाग में सूर्य उनके व्यापक दो नेत्र के रूप में अंकित हैं । निकास द्वार के उपरी चौखट के मध्य भी सर्वसिद्धि दाता गणेश की मूर्ति खुदी हुई है । मुख्य मंदिर में पूरब दो और पश्चिम दो अर्थात चार तहखाने हैं । मंदिर का स्वर्णवर्ण शिखर अपनी छटा बिखेरता रहता साथ में त्रिशूल और डमरू हैं ।
जिसमें बाबा का अभिशिक्त जल है । यह गंगावाहिनी की मूर्ति भी इस शिवधाम की पुरातनता को प्रमाणित करती है क्योंकि यह वर्तमान समय की निर्मित नहीं है । ज्योतिर्लिग के जलाभिषेक हेतु एक बड़ा ही चमत्कारी चन्द्रकूप है जिसका जल समय-समय पर रंग बदलता रहता है जो अजूबा है । कई रंगों में इस पवित्र जल का दर्शन होते रहता है । मंदिर परिसर में ही पर्यटकों के ठहरने हेतु धर्मशालाएं बनी हुई हैं । लगभग पाँच एकड़ की परिधि में यह परिसर चारों ओर चहारदीवारी से घिरा हुआ है ।
इस मंदिर में परिसर तीन द्वार बने हैं । पहला मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वी भाग में अत्यंत ही आकर्षक रूप में निर्मित है । इस द्वार के ऊपर भागीरथ की भव्य मूर्ति बनी हुई है । जिनके दाहिने हाथ में कमण्डल और बाएं हाथ में शंख हैं । इनके दोनों तरफ द्रष्टव्य मगर की । मूर्तियां भी हैं । दूसरा द्वार पश्चिम भाग में है जिससे श्रद्धालु पवित्र दह झील में स्नान के लिए जाते हैं ।तीसरा द्वार पूर्वी भाग में है, लोग इस द्वार से मंदिर परिसर से बाहर निकलते हैं । सचमुच वर्तमान का यह मंदिर अत्यंत ही मनभावन, पावन और सहावन बन पड़ा है । इस परम पूजनीय एवं दर्शनीय स्थल पर लोगों को एक प्रकार की आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है । वास्तु शास्त्र में भी शिव का महत्व बहुत अधिक है । वे ही वास्तु व पुरूष के स्वामी हैं और सबसे उत्तम दिशा ईशान कोण के देवता भी हैं । है ईशान कोण ठीक हो तो भवन में रहने वालों की सन्तति सुखधन सुख । हैं सभी ओर से उन्नति होती है । यदि ईशान कोण खराब हो तो सन्तति दे होने में एवं सन्तान के विकास कार्यों में रूकावट उत्पन्न होती है । जिस देवालय में जल लहरी का जल उत्तर दिशा में गिरता है । वहाँ प्रार्थनाअर्चना करने से समृद्धि आती है एवं मनोकामनाएं पूर्ण होतीहै । वास्तुशास्त्र में उत्तर दिशा, जल व कुबेर की मानी जाती है । यहाँ का ग्रह बुध है, जो वाणिज्य के कारक भी हैं ।