धर्म-कर्म : प्रतापगढ़ के रामपाल परिसर चिलबिला में चल रही भागवत कथा के दौरान कथा व्यास पवन देव ने सनातन धर्म और भागवत पुराण की महिमा का वर्णन करते हुए महत्वपूर्ण जीवन संदेश दिए। उन्होंने कहा कि भागवत पुराण को महापुराण की संज्ञा दी गई है और इसे वेद रूपी कल्प वृक्ष का फल माना गया है। इस कथा का उद्देश्य धर्म और संस्कारों का प्रचार-प्रसार करना है।
सनातन धर्म की अद्वितीयता पर जोर
कथा व्यास पवन देव ने कहा कि विश्व में यदि कोई सच्चा धर्म है तो वह सनातन धर्म ही है। उन्होंने अन्य सभी धर्मों को केवल संप्रदाय की श्रेणी में रखा। उन्होंने सनातन धर्म के घटते प्रभाव पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज के युग में बच्चों को धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा, “बच्चों को हाय-हेलो छोड़कर राधे-राधे और जय श्रीराम जैसे धार्मिक अभिवादन का अभ्यास कराना चाहिए।”
नमाज को संस्कृत शब्द बताया
पवन देव ने एक ऐतिहासिक और भाषाई दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहा कि नमाज शब्द संस्कृत से उत्पन्न हुआ है। यह बात सुनकर श्रोताओं में गहरी रुचि देखी गई। उन्होंने यह भी कहा कि सनातन धर्म के धार्मिक रीति-रिवाजों और अन्य धर्मों के बीच कई समानताएं हैं।
भक्त ध्रुव की जीवन लीला का वर्णन
कथा के दौरान पवन देव ने भक्त ध्रुव की कथा को विस्तार से सुनाया। उन्होंने बताया कि कैसे ध्रुव ने कठिन तपस्या और भगवान विष्णु की कृपा से अपने जीवन में महानता प्राप्त की। इस कथा से यह संदेश दिया गया कि भगवान पर अटूट विश्वास और धैर्य के साथ कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना किया जा सकता है।
धर्म की पुनर्स्थापना का आह्वान
कथा के अंत में व्यास जी ने श्रोताओं से अपील की कि वे अपनी परंपराओं और धर्म को जीवित रखने के लिए प्रयास करें। उन्होंने कहा कि हमें अपनी संस्कृति और धर्म के मूल्यों को समझने और उन्हें अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की आवश्यकता है।
उपस्थित श्रद्धालु और आयोजक
इस अवसर पर रवींद्र कुमार सिंह, डॉ. प्रतीक सिंह, सुरेश नारायण द्विवेदी एडवोकेट, हरिश्चंद सिंह, शंकर शरण सिंह और शिवकुमार सिंह जैसे प्रमुख लोग उपस्थित रहे। उनकी उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा को और बढ़ाया।
भागवत कथा न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार का माध्यम बनी। श्रद्धालुओं ने इसमें भाग लेकर आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया और जीवन के महत्व को समझा।