Patna : गया के पूर्व अनुमंडल पदाधिकारी (SDO) विकास कुमार जायसवाल को रिश्वतखोरी के मामले में न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बाद अब राज्य सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया है। यह निलंबन तब हुआ जब सरकार को उनके जेल में रहने की जानकारी आधिकारिक रूप से मिली। मामले की शुरुआत 2018 में हुई थी, जब विकास कुमार जायसवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में निगरानी थाने में मामला दर्ज किया गया था।
2018 का रिश्वत मामला और गिरफ्तारी
18 अप्रैल 2018 को विकास कुमार जायसवाल के चपरासी राजकुमार को ₹20,000 की रिश्वत लेते हुए निगरानी विभाग ने रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। राजकुमार ने पूछताछ के दौरान बताया कि वह यह रकम एसडीओ विकास कुमार जायसवाल के लिए ले रहे थे। इसके बाद निगरानी ब्यूरो ने विकास कुमार जायसवाल के खिलाफ भी मामला दर्ज किया और 20 मई 2018 को विशेष अदालत में चार्जशीट दाखिल की। इस केस के तहत उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट भी जारी किया गया।
अदालत से राहत नहीं मिलने पर सरेंडर
पटना हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका दो बार खारिज होने के बाद विकास कुमार जायसवाल ने 3 अगस्त 2024 को पटना की विशेष अदालत में सरेंडर किया, जिसके बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में बेऊर जेल भेजा गया। वे 23 अगस्त तक जेल में रहे और 6 सितंबर 2024 को जमानत पर रिहा होने के बाद पूर्णिया समाहरणालय में अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली।
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सरकार को देरी से मिली जानकारी, निलंबन का आदेश जारी
विकास कुमार जायसवाल के जेल में रहने की जानकारी पूर्णिया के जिलाधिकारी (DM) ने 20 सितंबर 2024 को सरकार को दी। डीएम की रिपोर्ट में बताया गया कि विकास कुमार जायसवाल 3 से 23 अगस्त 2024 तक जेल में थे। इस रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने 14 अक्टूबर 2024 को निलंबन का संकल्प जारी किया। इसमें स्पष्ट किया गया कि जेल में रहने की अवधि के दौरान उन्हें निलंबित माना जाएगा। इसके अलावा, जमानत पर रिहा होने के बाद भी उन्हें दोबारा निलंबित कर दिया गया है।
निलंबन के बाद मुख्यालय पटना में
विकास कुमार जायसवाल के निलंबन के बाद उनका मुख्यालय पटना प्रमंडल आयुक्त का कार्यालय निर्धारित किया गया है। निलंबन की अवधि के दौरान वे इसी कार्यालय से संबद्ध रहेंगे। सरकार ने यह फैसला लेते हुए स्पष्ट किया कि मामला रिश्वत और भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह सख्त कदम उठाना आवश्यक था।
विजिलेंस की कार्रवाई और न्यायिक प्रक्रिया
विजिलेंस के विशेष लोक अभियोजक विजय भानू ने बताया कि विकास कुमार जायसवाल के खिलाफ रिश्वत लेने के आरोपों की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद निगरानी ब्यूरो ने उन्हें आरोपी बनाया। उनके चपरासी की गिरफ्तारी और आरोपों की जांच के बाद ही एसडीओ के खिलाफ कार्रवाई तेज हुई। इस मामले ने प्रशासनिक हलकों में चर्चा को जन्म दिया है और भ्रष्टाचार के मामलों में कड़ी कार्रवाई की जरूरत को रेखांकित किया है।
पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने प्रशासनिक प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाए हैं। जेल में रहने के बावजूद, विकास कुमार जायसवाल का बिना जानकारी के ड्यूटी पर लौट आना प्रशासनिक अनियमितता को दर्शाता है। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से उम्मीद है कि भविष्य में ऐसे मामलों में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।