भारत के लिए चिंता; चीन समर्थक दिसानायके बने श्रीलंका के नए राष्ट्रपति
Patna : श्रीलंका में गहराते आर्थिक संकट और राजनीतिक उथल-पुथल के बाद हाल ही में राष्ट्रपति पद के चुनाव करवाए गए, जिसमें वामपंथी नेशनल पीपल्स पावर (NPP) पार्टी के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने बड़ी जीत दर्ज की। दिसानायके श्रीलंका के 10वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं, और उनके जीतने से देश के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव की संभावना जताई जा रही है। चुनाव में 54% वोट हासिल कर वह बहुमत की ओर बढ़ रहे थे, जबकि मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे तीसरे स्थान पर रहे। विक्रमसिंघे ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था।
दिसानायके के राष्ट्रपति बनने के साथ श्रीलंका में चीन समर्थक नीतियों के बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है। वह कोलंबो से सांसद हैं और वामपंथी नेशनल पीपल्स पार्टी (NPP) और जनता विमुक्ति पेरामुना (JVP) का नेतृत्व करते हैं। दिसानायके की छवि भ्रष्टाचार विरोधी नेता और गरीबों के मसीहा के रूप में बनी है, खासकर 2022 में श्रीलंका के आर्थिक और राजनीतिक संकट के दौरान। इसी लोकप्रियता के बल पर उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है।
चीन समर्थक नेता
अनुरा कुमारा दिसानायके की नीतियों और विचारधारा पर नज़र डालें तो वह मार्क्सवाद और लेनिनवाद के प्रति गहरा झुकाव रखते हैं। वह कई मौकों पर भारत का खुलकर विरोध कर चुके हैं और चीन के साथ उनके रिश्ते काफी मजबूत हैं। 2019 में भी उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था, लेकिन तब वह असफल रहे थे। इस बार, उन्होंने भ्रष्टाचार और श्रीलंका के विकास में रुकावटों को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया, जिसके कारण वह व्यापक जनसमर्थन जुटाने में सफल रहे।
भारत के लिए चिंताएं क्यों?
अनुरा कुमारा दिसानायके का राष्ट्रपति बनना भारत के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। उनके भारत विरोधी रुख और चीन के प्रति झुकाव ने भारत को चिंतित कर दिया है। दिसानायके पहले भी भारत-श्रीलंका के शांत समझौते का विरोध कर चुके हैं, जिसे भारत ने श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान लागू करवाया था। यह समझौता श्रीलंका में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन दिसानायके इसे श्रीलंका की संप्रभुता पर भारतीय हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं।
दिसानायके ने हाल ही में भारत के अडानी ग्रुप द्वारा श्रीलंका में किए गए 484 मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट को भी रद्द करने की बात कही थी। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि राष्ट्रपति बनने के बाद वह इस प्रोजेक्ट को निरस्त करेंगे। यह बयान भारत-श्रीलंका के व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों में दरार डालने वाला हो सकता है।
दिसानायके की पार्टी के संसद में केवल तीन सदस्य हैं, लेकिन उनकी विचारधारा और नीतियां श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में चीन के गहरे हस्तक्षेप का समर्थन करती हैं। वह बंद बाजार (क्लोज़्ड इकोनॉमी) की आर्थिक नीति के पक्षधर हैं, जिससे भारत-श्रीलंका के बीच व्यापारिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
चीन के प्रभाव और श्रीलंका की आर्थिक दुर्दशा
श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट के लिए चीन को ही प्रमुख कारण माना जाता है। चीन द्वारा दिए गए भारी कर्ज के जाल में फंसने के बाद श्रीलंका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई थी। जब श्रीलंका संकट में था, तब चीन ने सहायता का हाथ भी नहीं बढ़ाया। इसके बावजूद दिसानायके की पार्टी चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की पक्षधर है।
दिसानायके के राष्ट्रपति बनने से श्रीलंका की विदेश नीति में चीन का प्रभाव और बढ़ सकता है, जिससे भारत की रणनीतिक चिंताएं बढ़ गई हैं। श्रीलंका हिंद महासागर में एक प्रमुख सामरिक बिंदु है, और यदि वहां चीन का प्रभाव बढ़ता है, तो यह क्षेत्र में भारत की सुरक्षा और व्यापारिक हितों के लिए चुनौती बन सकता है।
भविष्य की चुनौतियां
अनुरा कुमारा दिसानायके ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत अभियान चलाया, जिसने उन्हें आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाया। 2022 के आर्थिक संकट के बाद लोगों के मन में भ्रष्टाचार और असफल सरकार के प्रति गुस्सा बढ़ गया था, जिसे दिसानायके ने बखूबी भुनाया। उनकी पार्टी को पिछले चुनाव में मात्र तीन फीसदी वोट मिले थे, लेकिन इस बार उन्होंने 54% वोट हासिल कर शानदार जीत दर्ज की।
दिसानायके के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और श्रीलंका के संबंधों में नई चुनौतियां आ सकती हैं। उनका चीन समर्थक रुख, भारत विरोधी बयानबाजी और आर्थिक नीतियों में बदलाव भारत के लिए कूटनीतिक रूप से कठिनाई भरा हो सकता है।