Politics : बिहार में मकर संक्रांति के अवसर पर दही-चूड़ा भोज हर साल चर्चा का विषय बनता है। यह भोज सिर्फ पारंपरिक उत्सव तक सीमित नहीं रहता, बल्कि राजनीतिक समीकरणों के बदलने का प्रतीक भी बन चुका है। इस साल का मकर संक्रांति भोज भी इससे अलग नहीं रहा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अप्रत्याशित कदम ने इस बार सियासी गलियारों में हलचल मचा दी। लोजपा (रामविलास) के चिराग पासवान ने अपनी पार्टी के कार्यालय में भव्य दही-चूड़ा भोज का आयोजन किया था। हालांकि, जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुबह पौने दस बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, उस समय चिराग पासवान वहां मौजूद नहीं थे। उनकी अनुपस्थिति में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी ने मुख्यमंत्री की अगवानी की। नीतीश के इस कदम ने सियासी पंडितों के बीच नई चर्चाओं को जन्म दिया।
सियासी खिचड़ी के मायने
बिहार में दही-चूड़ा भोज की राजनीतिक परंपरा लालू प्रसाद यादव ने 1995 में शुरू की थी। तब से यह भोज राजनीतिक संदेश देने का माध्यम बन गया। 2022 में, जब नीतीश कुमार एनडीए में थे, उन्होंने लालू प्रसाद के आवास पर जाकर दही-चूड़ा खाया था। उस समय राबड़ी देवी ने नीतीश को तिलक लगाकर स्वागत किया था। लेकिन कुछ महीनों बाद नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़कर महागठबंधन का दामन थाम लिया।
इस साल दिसंबर में, लालू प्रसाद ने नीतीश के लिए अपने दरवाजे खुले होने की बात कही, जिससे सियासत गरमा गई। लालू की बेटी और सांसद मीसा भारती के बयान ने भी राजनीतिक चर्चाओं को और हवा दी। लेकिन नीतीश कुमार ने अपनी प्रगति यात्रा के दौरान इन अफवाहों पर विराम लगाते हुए कहा, “दो बार गलती से चला गया था, लेकिन अब कहीं नहीं जाऊंगा।”
दही-चूड़ा भोज का सियासी सफर
इस साल मकर संक्रांति के मौके पर कई राजनीतिक दलों ने दही-चूड़ा भोज का आयोजन किया। 13 जनवरी को बिहार सरकार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के आवास पर भोज हुआ, जिसमें एनडीए के तमाम नेता शामिल हुए। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने भी पार्टी कार्यालय में दही-चूड़ा भोज रखा।
14 जनवरी को लालू प्रसाद यादव के आवास पर सादगीपूर्ण भोज आयोजित किया गया। वहीं, 15 जनवरी को लोजपा (पारस गुट) के अध्यक्ष पशुपति पारस ने भी भोज का आयोजन किया, जिसमें एनडीए और महागठबंधन के नेताओं को आमंत्रित किया गया।
नीतीश का खेला और नई चर्चाएं
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का लोजपा (रामविलास) के भोज में जाना और चिराग पासवान की अनुपस्थिति में उनकी पार्टी के नेताओं से मिलना सियासी संकेतों से भरा है। चिराग पासवान और नीतीश के रिश्ते हमेशा से चर्चा में रहे हैं। ऐसे में नीतीश का यह कदम राजनीतिक समीकरणों को नए सिरे से साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
दही-चूड़ा भोज का बढ़ता महत्व
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार के अनुसार, बिहार की राजनीति में दही-चूड़ा भोज का महत्व केवल पारंपरिक नहीं है, बल्कि यह राजनीतिक समीकरण बनाने और बिगाड़ने का जरिया बन चुका है। कोरोना काल के दौरान इस परंपरा में रुकावट आई थी, लेकिन अब यह फिर से राजनीतिक पटल पर प्रभाव डाल रही है।
क्या है भविष्य का संकेत?
नीतीश कुमार के लोजपा के भोज में जाने और चिराग पासवान की गैरमौजूदगी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह महज शिष्टाचार था, या इसके पीछे कोई सियासी योजना है? लालू प्रसाद के बयान और मीसा भारती की प्रतिक्रिया ने भी महागठबंधन और एनडीए के बीच संभावित समीकरणों को लेकर अटकलों को तेज कर दिया है।
बिहार में मकर संक्रांति के दही-चूड़ा भोज ने एक बार फिर सियासत में खिचड़ी पकाने का काम किया है। अब देखना यह है कि यह भोज भविष्य में क्या राजनीतिक समीकरण तैयार करता है।
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