धानुक जाति को एससी/एसटी में शामिल करने की मांग: रामदास राय धानुक
धानुक जाति को उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, उड़ीसा, दिल्ली, और पश्चिम बंगाल में एससी का दर्जा प्राप्त है, जबकि महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश में इस जाति को जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है।
Patna : धानुक समाज के चिंतक और समाज सुधारक रामदास राय धानुक (Ramdas Rai Dhanuk) ने धानुक जाति (Dhanuk caste) को अनुसूचित जाति (एससी SC) और अनुसूचित जनजाति (एसटी ST) में शामिल करने की पुरजोर मांग की है। एक विज्ञप्ति जारी करते हुए उन्होंने कहा कि धानुक जाति को उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, उड़ीसा, दिल्ली, और पश्चिम बंगाल में एससी का दर्जा प्राप्त है, जबकि महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश में इस जाति को जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है। वहीं, बिहार और झारखंड में धानुक जाति को अभी भी केवल अतिपिछड़ा वर्ग में रखा गया है, जिससे धानुक समाज के लोग सरकारी सुविधाओं और अन्य लाभों से वंचित हैं।
रामदास राय ने बताया कि 1954 में अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष काका कालेलकर ने धानुक जाति को पूरे भारत में एससी/एसटी का दर्जा देने की सिफारिश की थी। इसके बाद, 1978 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ने भी धानुक जाति को एससी में शामिल करने की अनुशंसा की थी। 1986 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिदेश्वरी दुबे ने भी इस जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का समर्थन किया था। इसके बावजूद, बिहार सरकार ने आज तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
रामदास राय ने धानुक समाज के ऐतिहासिक योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि यह जाति एक मार्शल कौम रही है, जिसने सदियों से देश की रक्षा और उसकी आन-बान-शान के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। उन्होंने कहा कि एक षड्यंत्र के तहत धानुक समाज को उनके मूलभूत अधिकारों से दूर रखा गया है। समाज के अधिकारों और हितों की उपेक्षा को धानुक समाज अब और बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने आगे कहा कि धानुक जाति की आबादी लगभग 10.5 प्रतिशत है, लेकिन इसे राजनीतिक रूप से हाशिये पर रखा गया है, जिससे उनके विकास में रुकावटें पैदा हो रही हैं।
धानुक समाज अब संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। रामदास राय ने सभी राजनीतिक दलों पर आरोप लगाते हुए कहा कि धानुक समाज को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया, लेकिन उनके विकास और अधिकारों की अनदेखी की गई। उन्होंने सरकार से मांग की कि धानुक जाति को बिहार और झारखंड में भी अनुसूचित जाति या जनजाति के तहत शामिल किया जाए, ताकि समाज के लोग सरकारी नौकरियों और अन्य सुविधाओं का लाभ उठा सकें और अपने जीवनस्तर में सुधार कर सकें।