गीत
Geet; संघर्षों को मुखर करें
भूख गरीबी लाचारी पर आओ मिलकर वार करें
संघर्षों को मुखर करें अब प्रतिकारों पर धार करें
चूल्हे बिना जले रह जाते, बच्चे भूखे सोते हैं
रह जाती है घुट कर आहें, लाचारी पर रोते हैं
अरमानों की लाशें ख़ुद अपने कांधों पर ढोते हैं
बदन अभावों की मारों से हर दिन जर जर होते हैं
गूँगी बहरी सरकारों को आओ हम लाचार करें
संघर्षो को मुखर करें अब प्रतिकारों पर धार करें
बस्ती कैसे आग पेट की सह कर रात गुजारेगी
बच्चे भूखे सोएंगे तो खुद ममता धिक्कारेगी
एक बगावत को ऐसे में हर इक चीख पुकारेगी
हालातों की सच्चाई को सच्ची कलम उतारेगी
आओ मिलकर अत्याचारों से आंखे दो चार करें
संघर्षो को मुखर करें अब प्रतिकारों पर धार करें
शिल्पा जैन