तीन दिवसीय भिखारी ठाकुर लोक महोत्सव 2024 का भव्य शुभारंभ
आरा (भोजपुर) : भिखारी ठाकुर सामाजिक शोध संस्थान के बैनर तले आयोजित तीन दिवसीय भिखारी ठाकुर लोक महोत्सव 2024 का शुभारंभ पारंपरिक ढंग से मंगलवार को किया गया। महोत्सव की शुरुआत सांस्कृतिक मंच के परिसर में भिखारी ठाकुर, बाबू ललन सिंह और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के साथ हुई। इस मौके पर जिले के जनप्रतिनिधियों, साहित्यकारों, पत्रकारों और संस्कृतिकर्मियों ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया।
उद्घाटन सत्र में विचार-विमर्श:
कार्यक्रम का उद्घाटन वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. डॉ. धर्मेंद्र तिवारी, आरा नगर निगम की महापौर इंदु देवी, समाजसेविका डॉ. जया जैन, प्रो. किरण कुमारी, मधु मिश्रा, सीनियर सिटीजन वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष धीरेन्द्र सिंह, साहित्यकार जनार्दन मिश्रा, प्रो. रेणु मिश्र, मौर्या होटल पटना के जीएम बी. डी. सिंह और प्रो. दिनेश प्रसाद सिन्हा समेत अन्य गणमान्य लोगों ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत में कमलेश व्यास ने भिखारी ठाकुर के रचित “गंगा स्नान” और अन्य गीतों की मधुर प्रस्तुति से समां बांध दिया। इसके बाद “भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता और अस्मिता की पहचान के सवाल” विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई।
भोजपुरी की संवैधानिक मान्यता पर परिचर्चा:
परिचर्चा में भोजपुरी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. अजय ओझा, गोरखपुर के पूर्व प्राचार्य नंदमणि लाल त्रिपाठी, देवरिया से आए जनार्दन सिंह अमन, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के भोजपुरी विभागाध्यक्ष प्रो. दिवाकर पांडेय, डॉ. कुमार शीलभद्र, डॉ. बीरेंद्र कुमार शर्मा और आचार्य धर्मेंद्र तिवारी समेत कई वक्ताओं ने भाग लिया।
डॉ. अजय ओझा ने कहा कि संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल न होने के कारण भोजपुरी भाषियों को बड़ा नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा, “भाषाई मान्यता के अभाव में भोजपुरी भाषियों के साथ भेदभाव होता है। जहां बंगाली बोलने वाली ममता बनर्जी को विद्वान माना जाता है, वहीं भोजपुरी बोलने वाली राबड़ी देवी को गंवार कहा जाता है।” उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाषाई भेदभाव संविधान का उल्लंघन है।
गोरखपुर के नंदमणि लाल त्रिपाठी ने कहा कि आंदोलन का समय अब खत्म हो चुका है। अब एक विशेष रणनीति बनाकर केंद्र सरकार को 100 दिनों के भीतर भोजपुरी को मान्यता देने के लिए मजबूर किया जाएगा। वहीं, देवरिया के जनार्दन सिंह अमन ने कहा, “याचना नहीं अब रण होगा – संग्राम बड़ा भीषण होगा।”
साहित्यकार डॉ. जनार्दन मिश्रा ने कहा कि भोजपुरी केवल भारत की ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध भाषा है। मॉरीशस और नेपाल जैसे देशों में भोजपुरी को मान्यता प्राप्त है, लेकिन अपने ही देश में इसे उपेक्षित रखा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के भोजपुरी विभागाध्यक्ष प्रो. दिवाकर पांडेय ने कहा कि शिक्षकों का काम भाषा को पढ़ाना और बढ़ावा देना है, लेकिन भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिलाना राजनीतिज्ञों का दायित्व है।
संघर्ष की शुरुआत का प्रस्ताव:
कार्यक्रम में सभी वक्ताओं ने सहमति जताई कि अब निर्णायक संघर्ष का समय आ गया है। सभी आंदोलनरत संगठनों को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा। इस संदर्भ में भिखारी ठाकुर लोक महोत्सव के मंच से संस्थान के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र सिंह ने एक कमिटी गठित करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें सभी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
सम्मान समारोह और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ:
महोत्सव के उद्घाटन समारोह में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. डॉ. धर्मेंद्र तिवारी, भोजपुरी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. अजय ओझा, गोरखपुर के पूर्व प्राचार्य नंदमणि लाल त्रिपाठी और देवरिया के डॉ. जनार्दन सिंह अमन को “भोजपुरी सेवक सम्मान” से सम्मानित किया गया।
इसके बाद जोगीबीर के दरोगा गोंड, टुनटुन गोंड और उनकी टीम ने गोंड नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी, जिसने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम के अंत में संस्थान की स्मारिका के आवरण पृष्ठ का अनावरण किया गया। भिखारी ठाकुर और भोजपुरी लोक संस्कृति पर आधारित यह स्मारिका फरवरी तक प्रकाशित की जाएगी।
कार्यक्रम संचालन और सहयोग:
कार्यक्रम का संचालन संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष नरेंद्र सिंह, भोजपुरी शोधार्थी रवि प्रकाश सूरज और पत्रकार बंटी भारद्वाज ने किया। इस अवसर पर चंद्रभूषण पांडेय, कवि राज कवि, रंजन यादव, सोहित सिन्हा, रंगकर्मी राजू रंजन, आदित्य, रवि कुमार और शंकर जी समेत अन्य कई सदस्य उपस्थित रहे।
तीन दिवसीय महोत्सव के पहले दिन ने न केवल भिखारी ठाकुर के लोकसंस्कृति के प्रति योगदान को याद किया बल्कि भोजपुरी भाषा की संवैधानिक मान्यता की मांग को भी नई दिशा देने का कार्य किया।
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