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सूर्य साधना का पर्व वह मकर संक्रांति – आचार्य धर्मेंद्रनाथ

आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र

प्रत्येकवर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति का का पर्व संपूर्ण भारत वर्ष में पूर्ण हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। संक्रांति का अर्थ होता है, संक्रमण वह जिस काल (समय) में हो , अर्थात इस बार मकर संक्रांति पुण्य काल(समय ) दिनांक 14-01-2022, रोज शुक्रवार को दोपहर 12:00 बजे के बाद शाम तक पुण्य काल है यह कहना है त्रिलोकधाम गोसपुर निवासी आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र का , उन्होंने मकर संक्रांति महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति सुख , शान्ति, वैभव, प्रगतिसूचक, जीवोंमें प्राणदाता, स्वाथ्यवर्धक , औषधियों के लिये गुणकारी, सिद्धिदायक और आयुर्वेद् के लिये विशेष महत्व की है ।  जिस काल में संक्रांति है उससे 16 घड़ी पहले और 16 घड़ी बाद पुण्यकाल मानते हैं, परंतु मकर संक्रांति को विशेष महत्व देनें के कारण 40 घड़ी बाद तक पुण्यकाल होता है। जब सूर्यदेव एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश( संक्रमण) करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं,  मकर संक्रांति इस मायने में अति महत्वपूर्ण है कि, इस समय सूर्यदेव एसे कोण पर आ जाते हैं , जब वे संपूर्ण रशिमयां मानव पर उतारते हैं । इस आध्यात्मिक तत्व को ग्रहण करने के लिये साधक को चैतन्य होना आवश्यक है। मकर संक्रांति को सूर्य साधना का पर्व माना जाता है।  सूर्य प्रत्येक राशि पर एक महीना तक संचार करते हैं, इस प्रकार प्रत्येक माह में प्रत्येक राशि की संक्रांति क्रमशः आती रहती है।  इनमें मकर संक्रांति का विशेष महत्त्व बताया गया है,  क्योंकि यह संक्रांति सौम्यायन संक्रांति है, इस दिन भगवान भास्कर उत्तरायण हो जाते हैं। मकरादि छः तथा कर्कादि छः राशियों का भोग करते समय सूर्य क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन में रहते हैं। इसी दिन से सूर्यदेव के उत्तरायण होने से देवताओं का ब्रह्ममुहूर्त प्रारम्भ होता है। अतः उत्तरायण होने पर वे देवताओं के तथा दक्षिणायन में पितरों के अधिपति होते हैं। सूर्य बारहों (12) राशियों में प्रवेश करता है, इसीलिये वर्ष में लगभग 11 संक्रांति होती है। दक्षिणायन से उत्तरायण में आने की सूर्यकी यह प्रक्रिया और एक राशि से दूसरी राशि मे सूर्य के प्रवेश दोनों का संगम ही मकर संक्रांति कहलाती है। दक्षिण भारत, उत्तरभारत तथा मिथिलांचल क्षेत्रों में अत्यधिक महत्त्व है। यह कहना है, गोसपुर त्रिलोकधाम निवासी, आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि सूर्यदेव के उत्तरायण होने के कारण यह समय बहुत ही शुभ माना जाता है। इस पुण्यकाल में दान , व्रत-उपवास यज्ञ, होमादि तथा यहाँ तक कि, प्राण त्यागने का भी विशेष महत्त्व है। दिन और रात का होना मौसम में परिवर्तन होना सूर्य की परिक्रमा का ही परिणाम होता है। इस उत्सव के दिन सभी एक दूसरे के घर आते-जाते है और तिल के लड्डू का आदान – प्रदान करते हैं । ताकि आपस में प्रेम- स्नेह बना रहे, यह पर्व साधना के दृष्टिकोण से अधिक महत्वपूर्ण है। पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है, कहीं लोहडी़ तो कहीं खिचडी़ पर्व के नाम से जाना जाता है। इस दिन दानादि का बहूत महत्व है। कहा जाता है कि इस पर्व के अवसर पर किया गया दान कई गुणा फलों की प्राप्ति कराता है। अतः सभी मानवों को मकर संक्रांति का पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनानी चाहिये।

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Ashok Ashq

Ashok ‘’Ashq’’, Working with Gaam Ghar News as a Co-Editor. Ashok is an all rounder, he can write articles on any beat whether it is entertainment, business, politics and sports, he can deal with it.

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