शम’अ बन कर तेरे पहलू में पिघल कर देखें !
कितनी आतिश है तेरे प्यार में जल कर देखें !!
आज की रात तेरी बज़्म में चल कर देखें !
अपने अशआर को ग़ज़लों में बदल कर देखें !!
चाँद पाने की तमन्ना में मचल कर देखें !
झील के जिस्म पे मदहोशी में चल कर देखें !!
क्या पता रूह को तस्कीन कहीं मिल जाये,
जिस्म की क़ैद से इक बार निकल कर देखें !
रूप देखो कभी तुम बाद-ए-सबा का धर कर ,
मिस्ले ख़ुशबू कभी हम फूल में ढल कर देखें !
ऐन मुमकिन है कि मिट जाये क़दूरत दिल से ,
तू भी तब्दील हो कुछ हम भी बदल कर देखें !
चाक दिल दर्दे जिगर और ‘वफ़ा’ है रुसवा ,
इन अज़ाबों से किसी रोज़ निकल कर देखें !
कविता सिंह “वफ़ा”, न्यू जर्सी, अमेरिका.