सद्गृहस्थ संत जगन्नाथ चौधरी पुण्य पर्व समारोह सुल्तानपुर गांव में मनाया गया
Darbhanga: जय-राम अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित कुशेश्वरस्थान के सुल्तानपुर गाँव में संत जगन्नाथ चौधरी की पुण्यतिथि का आयोजन किया। जय-राम शोध संस्थान सुल्तानपुर द्वारा आयोजित समारोह में संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति पंडित (डॉ.) शशिनाथ झा, प्रख्यात विद्वान डॉ. जगदीश मिश्र, शिक्षाविद श्री संजीव कुमार पाण्डेय, सुप्रसिद्ध कवि डॉ. नरेश कुमार विकल, डॉ. रामानंद झा रमन, डॉ. महेंद्र नारायण राम, श्री फूलचंद्र झा प्रवीण, श्री सुरेंद्र शैल, साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार विजेता श्री दीप नारायण विद्यार्थी सहित अन्य विद्वान उपस्थित थे।
सर्वप्रथम संत जगन्नाथ चौधरी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की गई और समाधि पर बनी छत उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। श्रीमती रेखा दास व पुष्पा दास ने जय जय भैरवी गाया। समारोह का शुभारंभ कुलपति पं. (डॉ.) शशिनाथ झा ने दीप प्रज्वलित कर किया। अतिथियों का मिथिला की पारंपरिक माला, पगड़ी और डोपटा से सम्मान किया गया।
इस वर्ष मिथिला-मैथिली से संबंधित शोध करने वाले विद्वान डॉ रामानंद झा रमण को सद्गृहस्थ संत जगन्नाथ चौधरी शोध पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार में एक मिथिला विजय स्तंभ, कंदरपीघाट की तस्वीर से सजी स्मारिका, ग्यारह हजार रुपये नकद, एक माला और मिथिला पेंटिंग से सजी पगड़ी शामिल है।
सम्मान समारोहक बाद डॉ. नरेश कुमार विकल केर रेडियो नाटकसंग्रह ‘चोखगर खोँच’, डॉ. रंगनाथ दिवाकर केर मैथिली आलेखसंग्रह ‘मिथिला मन्दार मञ्जरी’ आ डॉ. महेन्द्र नारायण रामक ‘दुसाध जाति का वृहत् इतिहास’ लोकार्पण अतिथिगण द्वारा किया गया। लॉन्च की गई तीनों पुस्तकें अनुप्रस प्रकाशन समूह, मधुबनी द्वारा प्रकाशित की गई हैं।
अपने संबोधन में डॉ. रामानंद झा रमन ने अतीत को संरक्षित करने के एकमात्र तरीके के रूप में अनुसंधान विषयों की आवश्यकता पर बल दिया। श्री संजीव कुमार पाण्डेय ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम अधिक से अधिक होने चाहिए। डॉ. जगदीश मिश्र ने कहा कि अपने पूर्वजों को याद करना बहुत बड़ी बात है। विकलजी ने रेडियो नाटक के इतिहास और भूगोल पर प्रकाश डाला। उन्होंने पुस्तक के सुंदर प्रकाशन के लिए अनुप्रास प्रकाशन के दीप नारायण की प्रशंसा की।
संबोधन के बाद डॉ. सिद्धार्थ शंकर विद्यार्थी ने बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन पर विद्यापति गीतों की प्रस्तुति बेहद खूबसूरत रही। इसके बाद कवि सम्मेलन हुआ। सर्वप्रथम दीप नारायण ने अपनी कविता की ‘’कि ने हमरा करेलक ए जिंदगी’’ का पाठ किया। इसे खूब सराहा गया। डॉ महेंद्र नारायण राम द्वारा प्रस्तुत लोक कथाएं श्रोताओं के बीच लोकप्रिय हुईं। श्री सुरेंद्र शैल की कविता ‘’ऐ पवन ठहार-ठहर नगर-नगर’’ के ध्वन्यात्मक सौंदर्य से श्रोता भावविभोर हो उठे। श्री फूलचन्द्र झा प्रवीण की कविता ‘’आही रे वै पयार तारक धरती सासरी जेल’’ को सुनने के बाद श्रोताओं की फरमाइश सुनकर दर्शक भावविभोर हो गए।
प्रवीण ने विलुप्त होते जा रहे मैथिली के शब्दों का प्रयोग कर कवि-सभा को व्यापक आयाम दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. नरेश कुमार विकल ने की और अपने गीतों से श्रोताओं का मन मोह लिया। सुप्रसिद्ध कवि चंदभानु सिंह के असाधारण गीत की कहियो गे कारिकी तोहर बजब बाद अनमोल चौ की विपरीत आवाज ने श्रोताओं को हमरा अब लगाये कोई बजाब तोहर ओल की तरह सोचने पर मजबूर कर दिया। उनकी दूसरी कविता मरुस्थल में फैला मेरा पत्थर सा जीवन है, बताओ मैं इसका क्या करूं, ऐसा उधार जीवन, श्रोताओं को छू गया। अनुरोध पर पढ़ें कविता कहुनके चली आउ विकलजी ने अपने गांव से सभा को लूट लिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन युवा कवि दीप नारायण ने किया तथा डॉ. रंगनाथ दिवाकर, निदेशक-सह-अध्यक्ष, जय-राम शोध संस्थान, सुल्तानपुर के धन्यवाद ज्ञापन के साथ समापन हुआ.