सहरसा : शहर के महाराणा प्रताप चौक के निकट संकेत पत्रिका कार्यालय परिसर में शनिवार को अशोक जयंती के अवसर वयोवृद्ध महामहिम राज्यपाल कोष से पेंशन प्राप्त साहित्यकार आचार्य योगेश्वर की अध्यक्षता में भारतीय सर्वभाषा रचनाकार संघ के अध्यक्ष मुक्तेश्वर मुकेश,सचिव प्रो राजाराम सिंह, प्रचार सचिव सुमन शेखर आजाद, आयोजन सहयोगी राजेश कुमार सिंह सहित अन्य कई प्रबुद्ध जन उपस्थित हुए।
सम्राट अशोक की जंयती पर वक्ताओ ने कहा कि अशोक महान तीसरी शताब्दी ईशा पूर्व के एक महान चक्रवर्ती शासक थे। अपने सम्बोधन में राजेश कुमार सिंह ने कहा कलिंग युद्ध के बाद भीषण रक्तपात से उद्वेलित होकर बौद्ध धर्म अपना कर पूरे विश्व में अशोक ने अंहिसा की ज्योति जलायी। सुमन शेखर ने कहा अशोक महान पर हमें गर्व है कि वे बिहार के सपूत थे। पाटलिपुत्र की महत्ता पूरे विश्व में है जहां उनकी राजधानी थी।वहीं प्रो राजाराम सिंह ने कहा कि हमारा राष्ट्रीय चिन्ह उन्हीं के अशोक स्तम्भ के सिंह और बौद्ध धर्म के धम्म चक्र का चक्र राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा पर अपनाया गया है। ऐसे चक्रवर्ती राजा हमारे बिहार के भूमिपुत्र हैं।
भारतीय सर्वभाषा रचनाकार संघ के अध्यक्ष मुक्तेश्वर मुकेश ने थोड़ी ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि वैशाली के वृज्जी संघ के जिस शाक्य गणराज्य के गणाधिपति शुद्धोधन के पुत्र रूप में महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई0 पूर्व में हुआ था। उसी कुल में ही चक्रवर्ती राजा चन्द्रगुप्त का जन्म हुआ। उन्हीं का पौत्र अशोक महान थे जिनके पिता का नाम सम्राट बिम्बिसार था। मुकेश ने आगे कहा यह बताना भी जरूरी है कि जब शाक्य नरेश पर कोसल नरेश विड्डभ बारम्बार हमला कर रहे थे तब शाक्य नरेश नेपाल की तराई में कपिलवस्तु की लुम्बनी से भागकर पिप्पली वन चले गये।
पिप्पली वन में पिपल के पेड़ों की बहुलता थी और मोर पक्षियां की काफी संख्या थी। बाद में पलायित शाक्य क्षत्रियों में सूर्यगुप्त हुए जिनकी पत्नी का नाम मुरा था। मुरा के गर्भ से चन्द्रगुप्त का जन्म हुआ। चूंकि मोर का निशान उनके पिप्पलीवन राज्य का ध्वज चिन्ह था। इसलिए उनका नाम चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध है। सम्राट अशोक का राज्याभिषेक 272-270 ई0पूर्व हुआ और 232 ई0पूर्व तक शासन किया। कलिंग युद्ध के उपरांत ह्रदय परिवर्तन हुआ और वे अपने ही कुल पितामह महात्मा बुद्ध की अंहिसा को राजधर्म बना लिया। अपने पुत्रों महेंद्र,कुणाल,बेटी संघमित्रा को पड़ोसी देशों में जाकर बौद्ध धर्म प्रचार का भार एक भिक्षुक रूप में सौंपा।
अहिंसा को महात्मा गांधी ने भी परमोधर्म:के रूप में अपनाया। आज पूरा विश्व इसी सिद्धांत को अपना कर युद्ध से दूर शांति के रास्ते पर चलना चाहता है। 2007 से विश्व अहिंसा दिवस भी 2अक्तूबर को मनाया जाता है।अन्त में आचार्य योगेश्वर ने कहा मुक्तेश्वर मुकेश के द्वारा प्राप्त जानकारी मुझे बौद्ध काल में पहुंचा दिया है मेरी इच्छा है कि इसपर शार्टफिल्म बनें।दूसरे सत्र में काव्य पाठ किया गया।