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बिहार की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा: लोक गायिकी का एक अमिट अध्याय

Sharda Sinha Death : छठ के पहले दिन (नहाय-खाय) पर मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया. दिल्ली के एम्स में उन्होंने 72 साल की उम्र में अंतिम सांस ली.

Sharda Sinha Death : बिहार की सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा नहीं रही, जिससे बिहार और समस्तीपुर जिले में शोक की लहर फैल गई है। दिल्ली एम्स में भर्ती 72 वर्षीय शारदा सिन्हा ने अपने जीवन की अंतिम सांसें लीं। उनकी बिगड़ती सेहत के कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था, लेकिन ‘नहाय-खाय’ के दिन, जो कि छठ पर्व का प्रथम दिन होता है, इस स्वर कोकिला ने जीवन से विदाई ली। उनके निधन से संगीत प्रेमियों और खासकर बिहार के लोक संगीत के चाहने वालों के बीच गहरा दुख है।

शारदा सिन्हा का संगीतमय सफर
शारदा सिन्हा का जन्म सुपोल, बिहार में हुआ औरसमस्तीपुर में उन्होंने अपने संगीत की जड़ें मजबूत कीं। उनकी गायिकी में एक अनूठा आत्मीयता का एहसास था, जो उनके गीतों के माध्यम से श्रोताओं को बिहार और मिथिला की मिट्टी से जोड़ देता था। लोक गीतों में उन्होंने ऐसा भाव जगाया, जिससे भोजपुरी और मैथिली संगीत एक नई ऊंचाई पर पहुंचा। अपने संगीतमय जीवन में उन्होंने कई यादगार गीत गाए, जिनमें छठ पर्व से जुड़े गीतों का विशेष योगदान है। उनके गीतों के बिना छठ पर्व का त्योहार अधूरा सा माना जाता है।

शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत बहुत ही साधारण रूप से की थी, लेकिन धीरे-धीरे उनकी गायिकी ने उन्हें देश के कोने-कोने तक प्रसिद्धि दिलाई। उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, और हिंदी भाषाओं में गाने गाए और बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को संपूर्ण देश में पहुँचाया। उनके गाने सिर्फ मनोरंजन के साधन नहीं थे, बल्कि उन्होंने बिहार की परंपराओं, जीवनशैली और संस्कारों को गहराई से दर्शाया।

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शिक्षा और कर्म क्षेत्र
समस्तीपुर जिले का गहरा लगाव शारदा सिन्हा से रहा। यहां के वीमेंस कॉलेज में वह संगीत की प्रोफेसर थीं और यहीं से उन्होंने सेवानिवृत्ति भी ली। इस प्रकार शारदा सिन्हा ने न केवल गायिकी के क्षेत्र में योगदान दिया, बल्कि अपनी शिक्षिका की भूमिका के माध्यम से नए कलाकारों को भी प्रशिक्षित किया। उनके घर का स्थान काशीपुर, समस्तीपुर में था, जहां से वह न केवल अपनी संगीत साधना करती थीं, बल्कि अपनी जड़ों से जुड़े भी रहती थीं।

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सांस्कृतिक राजदूत के रूप में पहचान
शारदा सिन्हा को बिहार की सांस्कृतिक राजदूत के रूप में भी जाना जाता था। उनकी प्रस्तुतियों में बिहार की संस्कृति, परंपराएं, और लोक संगीत की गहराई झलकती थी। मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम के बिहार दौरे के समय, उन्होंने अपनी गायिकी से मंच को सजाया था और अपनी माटी का मान बढ़ाया। छठ पूजा जैसे पर्वों के दौरान शारदा जी की प्रस्तुतियां मानो इस पर्व का अभिन्न हिस्सा बन चुकी थीं। उनके द्वारा गाए छठ गीत जैसे “केलवा के पात पर” और “नदिया के पार” ने लोक गीतों को देशभर में लोकप्रिय बना दिया।

पुरस्कृत जीवन
शारदा सिन्हा के संगीतमय योगदान को राष्ट्र ने समय-समय पर सराहा और उन्हें कई सम्मानों से नवाजा गया। साल 1991 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया और 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, जो उनकी कला और संगीत के प्रति समर्पण को दर्शाता है। इसके अलावा, बिहार सरकार ने भी उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया। उनके गाए गए गीत न केवल बिहार में बल्कि उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में भी बड़े चाव से सुने जाते हैं।

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उनका सांस्कृतिक योगदान और जनसेवा
गायन करियर के अलावा, शारदा सिन्हा कई सांस्कृतिक पहलुओं में भी सक्रिय रही। वह लोक संगीत को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत रहीं और नए गायकों को प्रेरित करती रहीं। उन्होंने एक प्रकार से आधुनिक दौर में भोजपुरी और मैथिली संगीत की पहचान बनाई और इसे वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का काम किया। उनकी यह पहल युवाओं को अपनी परंपराओं के प्रति जागरूक बनाने में सहायक रही।

निष्कर्ष
शारदा सिन्हा का योगदान अविस्मरणीय है। उनकी आवाज और उनके गीतों की गूंज हमेशा छठ पूजा जैसे पर्वों के दौरान हर बिहारवासी के दिल में गूंजती रहेगी। उनके निधन से बिहार के लोक संगीत का एक युग समाप्त हो गया है, लेकिन उनके द्वारा छोड़ी गई लोक गीतों की धरोहर सदैव बिहार की संस्कृति को जीवित रखेगी। उनके गीतों के माध्यम से वह हमेशा हम सबके दिलों में जीवित रहेंगी।

N Mandal

N Mandal, Gam Ghar News He is the founder and editor of , and also writes on any beat be it entertainment, business, politics and sports.

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