बिहार के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि अंग्रेजों ने भारत को सत्याग्रह के कारण नहीं, बल्कि हथियारों के भय से छोड़ा था। उन्होंने यह बात गोवा में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कही। यह कार्यक्रम आनंदिता सिंह की पुस्तक ‘पूर्वोत्तर भारत में स्वतंत्रता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास (1498 से 1947)’ के विमोचन के अवसर पर आयोजित किया गया था।
हथियारों से डरकर अंग्रेजों ने छोड़ा देश
राज्यपाल ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में हथियारों का अहम योगदान रहा है। उन्होंने कहा, “अंग्रेजों ने सत्याग्रह के कारण नहीं, बल्कि इसलिए भारत छोड़ा क्योंकि उन्होंने देखा कि भारतीयों के हाथों में हथियार आ गए हैं और स्थिति किसी भी हद तक जा सकती है।” उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटिश संसद के कई भाषणों में भारतीय सशस्त्र संग्राम का जिक्र मिलता है।
राज्यपाल ने दावा किया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल अहिंसक आंदोलनों का नतीजा नहीं था। उन्होंने कहा, “हमारे स्वतंत्रता संग्राम में हथियारों की भूमिका को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया। सत्याग्रह का अपना महत्व है, लेकिन यह सोचना कि यह अकेले भारत की आजादी का कारण था, इतिहास की एक पक्षपाती व्याख्या है।”
इतिहास को सही दृष्टिकोण से पेश करने की जरूरत
गोवा में पुर्तगाली कब्जे का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा कि अब समय आ गया है कि इतिहास को सही दृष्टिकोण से सामने लाया जाए। उन्होंने कांग्रेस सरकारों पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) ने एक मनगढ़ंत कथा गढ़ी कि भारतीय गुलामी के लिए पैदा हुए हैं। तत्कालीन सरकारों ने भी इस दृष्टिकोण को समर्थन दिया।
उन्होंने कहा, “जिन आक्रांताओं ने हम पर हमला किया, वे हमारे कभी नहीं हो सकते। उन्होंने हमारे इतिहास को गलत तरीके से पेश किया। भारतीय ऐतिहासिक साक्ष्यों को नष्ट करने का भी प्रयास किया गया। हालांकि, हमारे पास अभी भी सबूत हैं और हमें इन्हें संरक्षित कर सही इतिहास दुनिया के सामने लाने की जरूरत है।”
गोवा का सही इतिहास सामने लाने का आह्वान
राज्यपाल ने गोवा के इतिहास पर बात करते हुए कहा कि गोवा पर पुर्तगालियों के कब्जे की सच्चाई भी दुनिया के सामने आनी चाहिए। उन्होंने कहा, “आने वाले समय में गोवा का सही इतिहास सामने लाने की दिशा में काम किया जाएगा। हमें बिना किसी डर के अपने इतिहास को प्रस्तुत करना चाहिए।”
राजेंद्र आर्लेकर के इस बयान ने ऐतिहासिक तथ्यों पर एक नई बहस छेड़ दी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके इस दृष्टिकोण पर इतिहासकार और राजनीतिक विशेषज्ञ क्या प्रतिक्रिया देते हैं।
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