- Svapn Daan
अपनी आन्तरिक इच्छा को मूर्त रूप देने के लिये एक सपने की आवश्यकता होती है। इच्छा कब से थी और कब मैं सपना देखने लगी पता नहीं। सपना भी क्या तो “एक छोटे से मकान का”। जिसे अपना कहूं अपने हाथों से सजा कर अपना घर बनाऊँ ।
यह एक ऐसी चीज है जो लोग कहते हैं कि सिर्फ सपने देखने से पूरे नही होते हैं बल्कि हाथों में लकीर भी होनी चाहिये। बात जब हाथ के लकीर की आ गयी तो निश्चित रूप से ईश्वर के शरण में जाना ही पड़ेगा। कारण वही लकीर बनाते हैं व मिटाते हैं तथा न रहने पर नयी लकीर खींचते भी हैं।
घरौंदे की पूजा से घर होता है यह एक अविश्वसनीय कथन है जिसे विश्वसनीय बनाया मैंने। अपने हाथों से एक घरौंदा बनाया। सजाया। पूजा किया। उसका घरवास भोज भी दिया।
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किन्तु ईश्वर की इच्छा मेरी परीक्षा लेने की थी। हस्त रेखा प्रबल मेरे निकटतम की थी। परीक्षक ईश्वर हो तो परीक्षार्थी का संयम धैर्य ज्ञान दर्शनीय होता है। मैंने सोचा शास्त्रों में दान का बहुत महत्त्व है। लोग कन्यादान, पुत्रदान, भूमिदान, रक्तदान, नेत्रदान आदि दान कर पुण्य के भागी बनते हैं। और उनका दान ‘बलिदान’ कहलाता है। मैं भी क्यों न दान करूँ…”स्वप्नदान”
पता नहीं शास्त्र में इस दान का क्या फल निहित है??
मैंने स्वप्नदान किया। कई रातें जागकर जिस ‘सपने’ को देखा या उसे देकर आन्तरिक सुख की अनुभूति हो रही थी। निकटम प्रिय के घर में मैं थी, मेरे आंसू थे और मेरा सपना था, जो घर के हरेक कोने से पुकार रहा था, अपने साकार होने का आकार दे रहा था।
डा० भारती झा काँटी, मुजफ्फरपुर