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भगवान श्रीकृष्ण का दिल भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्यमय ब्रह्म पदार्थ

Religious : आज हम आपको एक ऐसे रहस्य के बारे में बता रहे हैं जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है। वह है भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, देवी सुभद्रा और सुदर्शन की मूर्तियों के ब्रह्म पदार्थ। यह ब्रह्म पदार्थ क्या है, इस बारे में कोई नहीं जानता। यह काफी रहस्यमय चीज है। आइए, इस पर हम थोड़ा प्रकाश डालते हैं-जगन्नाथ जी की रथ यात्रा काफी धूम-धाम से संपन्न होती है। इसमें चारों मूर्तियां रथों पर सवार होकर निकलती हैं। ये मूर्तियां लकड़ी की होती हैं। एक निश्चित अवधि होने के बाद इन मूर्तियों को बदल दिया जाता है। स्थानीय लोग इसे नवकलेवर उत्सव के नाम से जानते हैं। कलेवर का अर्थ शरीर होता है। भगवान के रथ निर्माण से पहले जंगल से लकड़ी लाई जाती है

इस काम के लिए प्रार्थना कर देवताओं से अनुमति प्राप्त की जाती है। 12 से 18 वर्ष के अंतराल पर यह प्रक्रिया की जाती है। मूर्तियां तो नई बन जाती हैं। लेकिन, जिस प्रकार जीव के दो भो होते हैं-शरीर और आत्मा, उसी प्रकार इन मूर्तियों के भी दो भाग माने जाते हैं। एक लकड़ी का नश्वर आवरण और दूसरा अविनाशी ब्रह्म पदार्थ। कहा जाता है कि इस पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसो आत्म पदार्थ के नाम से भी जाना जाता है।

नवकलेवर विधान में इसी ब्रह्म पदार्थ को पुरानी से नई मूर्तियों में स्थानांतरित किया जाता है। इस विधान के अनुसार भगवान का कहना है, ”यद्यपि मैं पूर्ण ब्रह्म हूंं , जन्म और पुर्नजन्म के चक्र से परे, तथापि मैं तुम्हारा आराध्य हूं और इस लिए मैं तुम से भिन्न नहीं हूं। जैसे आत्मा एक से दूसरे शरीर में प्रविष्ट करती है, उसी प्रकार मैं भी वही करता हूं क्योंकि अवतार के रूप में मैं जीव से भिन्न नहीं रहना चाहता। नवकलेवर उत्सव के तहत पहले विधि-विधान से उन पेड़ों को खोज कर निकाला जाता है जिनसे भगवान की प्रतिमाएं बनती हैं।

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जगन्नाथ मंदिर के लगभग 100 सेवक मंदिर के प्रधान सेवक मछराल गजपति से यात्रा की अनुमति प्राप्त करते है और फिर वे देवी मंगला के मंदिर में जाकर प्रार्थना करते है। चार वरिष्ठ सेवक मूर्ति के सानिध्य के सम्बन्ध में देवी प्ररेणा ग्रहण करते हैं। इसके बाद नीम के पेड़ों की तलाश की जाती है। पूजा के बाद इन पेड़ों को सफेद कपड़ों से ढंक कर गिराया जाता है। इसके बाद मंदिर लाकर इन लकडिय़ों की देव स्नन पूर्णिमा तक पूजा की जाती है। बाद में कुछ विधि-विधानों के बाद चार दिनों में इन प्रतिमाओं का निर्माण होता है। इसके बाद शुरू होती है सबसे गुप्त परंपरा। नई और पुरानी प्रतिमाओं को आमने-सामने रखा जाता है।

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इसके बाद मंदिर समेत पूरे शहर की बिजली बंद कर दी जाती है। यहां तक कि विधि-विधान करने वाले पुजारियों की आंखों पर भी पट्टी बांध दी जाती है। इसके बाद ब्रह्म पदार्थ को पुरानी से नई मूर्तियों में स्थापित किया जाता है। इसके बाद मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा होती है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्तियों को जुलूस में ले जाया जाता है और इसके अगले दिन रथयात्रा होती है। फिर भी यह रहस्य बरकरार है कि यह ब्रह्म पदार्थ या आत्म पदार्थ क्या है। कुछ लोककथाओं के अनुसार , जब भगवान श्री कृष्ण की मौ त बहेलिए के तीर से हो गई तो उसने भगवान के शरीर का अंतिम संस्कार किया पर पूरा शरीर जल जाने के बाद भी वहां एक यंत्र बाकी रह गया था जिसमे कंपन हो रहा था और माना जाता है कि यह श्री कृष्ण का हृदय था।

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उस बहेलिए ने उस यंत्र को फिर जलाना चाहा लेकिन वह फिर असफल रहा तब वह उस यंत्र को बाजार में बेचने निकला लेकिन कोई भी उस यंत्र को लेने को तैयार नही हुआ तब उसने उस यंत्र को एक काठ पर रख कर नदी में प्रवाहित कर दिया जो कि जगन्नाथपुरी के राजा को मिला और उन्होंने उस यंत्र को भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति बनवा कर उसमें स्थापित करवा दिया। यह यंत्र प्रकाश में आने पर विचित्र रूप से प्रतिक्रिया देने लगता है इसीलिए जब इसका स्थानांतरण किया जाता है तब बिजली बंद कर दी जाती है।

और कुछ लोगों का कहना है कि यह बिजली का करंट दे सकता है इसी लिए भगवान जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी की बनी होती है क्योंकि लकड़ी विद्युत का कुचालक है। और इस यंत्र में से चांदी के रंग का द्रव्य निकलता है जिस से मूर्ति धीरे धीरे खराब हो जाती है इसी लिए हर 12 साल बाद भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बदल दी जाती है.

N Mandal

N Mandal, Gam Ghar News He is the founder and editor of , and also writes on any beat be it entertainment, business, politics and sports.

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