पटना: भाकपा-माले के 11 वें महाधिवेशन के चौथे दिन प्रतिनिधि सत्र में मजदूर वर्ग, स्कीम वर्कर्स, सफाई कर्मियों और अन्य कामकाजी तबकों की मांगों व आंदोलनों पर जोरदार बहसें हुईं. यह जानकारी ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी, स्कीम वर्कर्स की शशि यादव, टी गार्र्डेन आंदोलन की नेता सुमंती एका और आइआरपीएफ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डाॅ. कमल उसरी ने संवाददाता सम्मेलन में दी.
राजीव डिमरी ने कहा कि फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई में मजदूर वर्ग ही सबसे बड़ी ताकत है और उन्हीं को अगुआ भूमिका निबाहनी है. आज देश में कॉरपोरेट कम्पनी राज स्थापित किया जा रहा है. देश की एक-एक ईंट को बेचा जा रहा है और मजदूरों को गुलामी में धकेला जा रहा है. चार श्रम कोड कानून मजदूरों पर सबसे बड़ा हमला है. यह उन्हें गुलाम मजदूर बनाने का प्रयास है. सामाजिक सुरक्षा के सवाल को हाशिए पर धकेल दिया गया है. इसलिए भाजपा सरकार की इस देश से विदाई अत्यंत जरूरी है.
शशि यादव ने कहा कि स्कीम वर्कर्स में 95 परसेंट महिलाएं है, लेकिन उनकी स्थिति बंधुआ मजदूरों जैसी है. आशा वर्कर का कोई वेतन नहीं है, जबकि ग्रास रूट स्तर पर स्वास्थ्य सेवा की जिम्मेवारी इन्हीं के कंधों पर है. पार्टी कांग्रेस में इनके मुद्दों पर बातचीत हुई और आने वाले दिनों में बड़े आंदोलन का निर्णय लिया गया है.
टी गार्डन बंगाल में चाय मजदूरों के बीच काम करने वाली सुमंती एका ने चाय बगानों की दर्दनाक स्थिति को सुनाया. उन्होंने कहा कि बंगाल में 283 कंपनी बगान हैं, 30 हजार से ज्यादा छोटे बगान हैं, इसमें बड़ी संख्या में मजदूर काम करते हैं, लेकिन उनकी हालत बहुत खराब है. हम 700 रु. प्रतिदिन मजदूरी निर्धारित करने की लड़ाई लड़ रहे हैं.
डॉ कमल उसरी ने कहा कि भारतीय रेलवे पूरी तरह से बिक रही है. रेलवे में तमाम सुविधाओं व मिलने वाली छूटों को खत्म किया जा रहा है. पार्टी कांग्रेस में पुरानी पेंशन को बड़ा मुद्दा बनाने पर बात हो रही है. यह 2024 के चुनाव का भी बड़ा मुद्दा बनेगा. उन्होंने कहा कि हम रेलवे के सवाल को आम जनता का सवाल बनायेंगे.
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश का संबोधन
भाकपा-माले के 11 वें महाधिवेशन के चैथे दिन आज 19 फरवरी को देश के कई चर्चित पत्रकारों – समाजशास्त्रियों ने संबोधित किया. अतिथि के बतौर हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अनिल चमडिया, समाजशास्त्री आदित्य निगम, भाषा सिंह, रति राव, प्रो बनर्जी और पटना के प्रोफेसर विद्यार्थि विकास आदि ने संबोधित किया.
वरिष्ठ हिंदी पत्रकार उर्मिलेश ने कहा कि भारत के वामपंथी आंदोलन में शामिल लोगों की समझदारी व कुर्बानी का कोई मुकाबला नहीं है. आजादी की लड़ाई के इतिहास के पन्ने भी इसकी गवाही देते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में उत्पीड़ित समाजों की समस्याएं बहुत हीं अलग हैं. भाकपा (माले) ने न केवल इतिहास की व्याख्या में इस नजरिए को शामिल किया है बल्कि शुरुआत से ही इसके प्रति काफी संवेदनशील रही है.
उन्होंने कहा कि ऐसे वक्त में जब भाजपा व संघ परिवार सामाजिक न्याय की पूरी अवधारणा को ही खत्म करने पर तुली हुई है, और सामाजिक न्याय की परंपरागत पार्टियों के भीतर भी उसका स्पेस कम होता जा रहा है, भाकपा (माले) को अपनी यह भूमिका हर स्तर पर बढ़ानी होगी.
11 वें महाधिवेशन में देश के विभिन्न राज्यों और विभिन्न भाषाओं में सृजित प्रतिरोधी
साहित्य-संस्कृति-कला की झलक देखने को मिली
महाधिवेशन में पश्चिम बंगाल, असम, कार्बी आब्लॉग, झारखंड, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान आदि राज्यों की सांस्कृतिक टीमों, जनगायकों और कलाकारों ने गायन और नृत्य की प्रस्तुतियाँ कीं. इनमें सामूहिक सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ अधिक थीं.
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की शुरुआत शहीद गीत से हुई. महाधिवेशन में गाये गये जनगीतों में दमन और हत्याओं के प्रतिरोध की अदम्य भावना की अभिव्यक्ति हुई. पश्चिम बंगाल के संस्कृतिकर्मियों ने शोषक- उत्पीड़क और जालिम सत्ता को संबोधित अपने सामूहिक गान में स्पष्ट रूप से कहा कि तुम चाहे जितना भी हमला करो, जितने लोगों को मारो, हम नहीं मरेंगे, हम फिर से जी उठेंगे.
पश्चिम बंगाल के कलाकारों ने नक्सलबाड़ी विद्रोह के दौरान चर्चित गीत ‘मुक्त होगी प्रिय मातृभूमि’ पर आधारित सामूहिक नृत्य के माध्यम से भाकपा (माले) के 11 वें महाधिवेशन के केंद्रीय स्लोगन ‘ लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ’ की भावना को अभिव्यक्ति दी.
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में इस दौर में चल रहे विभिन्न प्रकार के संघर्षों को भी मुखर किया गया. झारखंड की प्रीति भास्कर ने महिला आजादी से संबंधित आकांक्षा और संघर्ष को अपने नृत्य के जरिए मूर्त किया. झारखंड के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत सामूहिक नृत्य में शजल, जंगल, जमीन के लिए चल रहे संघर्ष को तेज करने का आह्वान था. असम के प्रतिनिधियों ने चाय बगान में उचित मजदूरी के लिए हो रहे संघर्ष से संबंधित गीत सुनाये.
क्रांतिकारी वामपंथी धारा के प्रमुख कवि गोरख पांडेय की क्रांतिकारी सांस्कृतिक भूमिका को जाग मेरे मन मछंदर गीत के माध्यम से याद किया गया और पूंजी के साम्राज्य के विरुद्ध सचेत संघर्ष का आह्वान किया गया. इस गीत को हिरावल के संतोष झा और डी. पी. सोनी ने सुनाया.
माले के महाधिवेशन में प्रतिरोध की जो सांस्कृतिक आवाजें गूंजी, उनमें यह स्पष्ट संदेश था कि क्रांतिकारी वामपंथी जनराजनीति और जनसंस्कृति की जो धाराएँ हैं, उनका प्रवाह जारी रहेगा. जसम, बिहार के कलाकारों ने ऐलान किया- दबने वाले है दमन हे तेरे.
महाधिवेशन के दौरान फासीवाद के खिलाफ विपक्षी पार्टियों की एकता के उद्देश्य से हुए कन्वेंशन के आरंभ में मशहूर इंकलाबी शायर फैज अहमद फैज की नज्म ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ में भी ऐसी ही भावना का इजहार हुआ.
महाधिवेशन के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका भी साहित्य-संस्कृति और राजनीति के अटूट रिश्ते की बानगी है. इसका एक विशेष खंड बिहार के साहित्यकार- संस्कृतिकर्मियों पर केंद्रित है, जो सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन और क्रांति में साहित्यिक-सांस्कृतिक कर्म की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति भाकपा (माले) की वैचारिक समझ को स्पष्ट करता है.
भाकपा माले की 11वीं कांग्रेस में अंतर्राष्ट्रीय स्थिति और जलवायु परिवर्तन पर संकल्प प्रस्ताव पारित
11वीं पार्टी कांग्रेस ने अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर मसौदा प्रस्ताव पास किया, जिसमें विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध, रूस और चीन के प्रति पार्टी के दृष्टिकोण की व्याख्या की गई थी.
भाकपा(माले) ने स्पष्ट रूप से यूक्रेन के खिलाफ रूसी आक्रमण की निंदा की और युद्ध समाप्त करने का आह्वान किया. पार्टी ने नाटो को अमेरिकी साम्राज्यवाद का एक वाहक मानते हुए इसके विघटन का आह्वान किया. पार्टी ने यह भी कहा कि चीन अब चीनी विशेषताओं वाला एक पूंजीवादी राज्य है. इसने समाजवाद को बुनियादी कल्याणवाद तक सीमित कर दिया है, जहां पूंजीवाद को नियंत्रण में रखा गया है, लेकिन राजनीतिक स्वतंत्रता का घोर अभाव है. अफ्रीका, पाकिस्तान और अन्य देशों में चीनी पूंजीवाद की भूमिका को एक आलोचनात्मक तरीके से देखने की जरूरत है.
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर संकल्प में भाकपा (माले) ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा असर गरीब और वंचित लोगों पर पड़ रहा है. भारत वैश्विक स्तर पर इन मुद्दों को संबोधित करने में विफल रहा है और देश के भीतर यह सुनिश्चित नहीं किया है कि पर्यावरण विनाश के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए.
भाकपा (माले) ने उत्तराखंड, असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में पर्यावरण क्षरण के खिलाफ आंदोलनों के प्रति एकजुटता दिखाई. प्रस्ताव में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को भारत के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने के लिए कॉरपोरेट्स को खुली छूट देने के रूप में देखा गया. सरकार बढ़ती जलवायु समस्याओं के संबंध में गरीबों और हाशिए पर रहने वालों की मांगों पर चुप है. पर्यावरणीय गिरावट के परिणामस्वरूप नीतियों को वापस लिया जाना चाहिए और उसे सही किया जाना चाहिए. पार्टी संगठन पर रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों पर पार्टी कांग्रेस में विचार-विमर्श जारी है.