बिहार
आँचलिक कहानियों और उपन्यासों के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ को नमन
फणीश्वर नाथ ‘ रेणु ‘ का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार राज्य के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। तत्कालीन पूर्णिया जिले में था। रेणु की शिक्षा-दीक्षा भारत और नेपाल में हुई। रेणु जी का बिहार के कटिहार से गहरा संबंध रहा है । फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ अपने उपन्यास मैला अंचल उपन्यास के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं इनकी लेखन शैली आंचलिक थी ।
आंचलिकता की ऐसी शैली न तो इनसे पहले और न हीं इनके बाद देखने को मिलती है इनके प्रसिद्ध उपन्यास और कहानियाँ हैं । इनकी पहली शादी कटिहार जिले के हसनगंज प्रखंड अंतर्गत बलुआ ग्राम में काशी नाथ विश्वास की पुत्री रेखा रेणु से हुई, रेणु जी की दो बेटीयाँ हैं बड़ी कविता राय और छोटी वहीदा राय । इनकी प्रारंभिक शिक्षा फारबिसगंज तथा अररिया में हुई इसके बाद ‘रेणु’ ने मैट्रिक की पढ़ाई कोइराला परिवार में रहकर नेपाल के विराटनगर आदर्श विद्यालय से की । इसके बाद इन्होने इन्टरमीडिएट की पढ़ाई काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस से की ।
इन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया बल्कि भारत के साथ साथ नेपाल में भी जनतंत्र की स्थापना में अहम भूमिका निभाई । 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में हिस्सा लिया जिसके परिणामस्वरुप नेपाल में जनतंत्र की स्थापना हुई। इसके बाद इन्होंने पटना विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ छात्र संघर्ष समिति में सक्रिय रूप से भाग लिया और जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में अहम भूमिका निभाई।
1952- 1953 के समय ये भीषण रूप से रोगग्रस्त हुए जिसके बाद लेखन की ओर उनका झुकाव हुआ। उनके इस काल की झलक उनकी कहानी तबे एकला चलो रे में मिलती है। उन्होने हिन्दी में आंचलिक कथा की नींव रखी। इनके समकालिक लेखक और कवियों में सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन, अज्ञेय थे अज्ञेय और वात्स्यायन ‘रेणु’ के परम मित्र थे एक समकालीन कवि, उनके परम मित्र थे । इनकी प्रमुख कृतियों में मैला आंचल, परती परिकथा, जूलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, कलंक मुक्ति, पलटू बाबू रोड, ठुमरी, एक श्रावणी दोपहर की धूप, मारे गये गुलफाम (तीसरी कसम), एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, पंचलाइट तबे एकला चलो रे, ठेस, संवदिया आदि हैं । इन्हें मैला आँचल के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था