डॉलर पर डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी: ब्रिक्स देशों को सख्त संदेश क्यों?
डॉलर के दबदबे पर खतरा: ब्रिक्स को 100% टैरिफ की ट्रंप की चेतावनी क्यों?
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ”Donald Trump” ने ब्रिक्स देशों को चेतावनी दी है कि अगर वे अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने की कोशिश करेंगे, तो उन्हें 100 प्रतिशत टैरिफ़ का सामना करना पड़ेगा। ट्रंप का यह बयान अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और कूटनीतिक समीकरणों में हलचल पैदा कर रहा है।”
ब्रिक्स समूह, जिसमें भारत, रूस, चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के अलावा नए सदस्य देशों जैसे ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और इथियोपिया शामिल हैं, वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में डॉलर के विकल्प पर विचार कर रहे हैं। इस पर ट्रंप की सख्त प्रतिक्रिया बताती है कि अमेरिका अपनी मुद्रा के दबदबे को लेकर चिंतित है।
ट्रंप का संदेश और उसकी पृष्ठभूमि
ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “डॉलर से दूर होने की ब्रिक्स देशों की कोशिश में हम मूकदर्शक बने नहीं रह सकते।”
उन्होंने कहा कि अमेरिका चाहता है कि ब्रिक्स देश न तो किसी नई मुद्रा का निर्माण करें और न ही डॉलर के विकल्प को बढ़ावा दें। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि ऐसा करने वाले देशों को अमेरिकी बाजार तक पहुंच खोनी पड़ेगी। ट्रंप की यह चेतावनी उनके “अमेरिका फर्स्ट” एजेंडे के अनुरूप है, जहां अमेरिका के हितों को सर्वोपरि रखा गया है।
डॉलर की वैश्विक स्थिति
डॉलर का वैश्विक महत्व अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ताकत और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इसकी स्वीकार्यता पर आधारित है। दुनिया के केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी अमेरिकी डॉलर की है।
हालांकि, रूस और चीन जैसे देश लंबे समय से अमेरिकी डॉलर की प्रभुता को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध और चीन का युआन में व्यापार करने का प्रयास ऐसे कदम हैं जो डॉलर की मजबूती को चुनौती देते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिक्स देशों की यह पहल डॉलर के विकल्प की दिशा में धीमी लेकिन महत्वपूर्ण शुरुआत हो सकती है।
डॉलर के विकल्प की कोशिश
ब्रिक्स ने हाल के वर्षों में वैकल्पिक वित्तीय नेटवर्क और मुद्राओं के इस्तेमाल की दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
1. रूस और चीन के प्रयास: रूस और चीन ने आपसी व्यापार में अपनी स्थानीय मुद्राओं का उपयोग करना शुरू किया है।
2. न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): ब्रिक्स देशों ने 2015 में न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की, जो कई परियोजनाओं को फंड कर रहा है। इस फंडिंग में डॉलर की बजाय स्थानीय मुद्राओं का उपयोग हो रहा है।
3. अन्य समझौते: चीन ने ब्राज़ील और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ युआन में व्यापारिक समझौते किए हैं। भारत ने भी रूस के साथ इसी दिशा में समझौते किए हैं।
इन प्रयासों से भले ही तुरंत कोई नई वैश्विक मुद्रा उभरने की संभावना नहीं है, लेकिन ये डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने की दिशा में संकेत हैं।
ट्रंप की चिंता: राजनीतिक और आर्थिक कारण
ट्रंप के इस कड़े संदेश के पीछे आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं।
1. अमेरिकी दबदबे की रक्षा
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और डॉलर इसका प्रतीक है। अगर ब्रिक्स जैसी संस्थाएं डॉलर को कमजोर करने में सफल होती हैं, तो इससे अमेरिका की आर्थिक और कूटनीतिक ताकत कम हो सकती है।
2. चुनावी राजनीति
अमेरिका फर्स्ट का नारा ट्रंप की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा है। मजबूत डॉलर को बनाए रखना और अमेरिकी हितों की रक्षा करना उनके चुनाव अभियान की धुरी है।
3. रूस और चीन को रोकने की रणनीति
रूस और चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना अमेरिका की कूटनीति का अहम लक्ष्य है। ब्रिक्स का उपयोग करके ये देश वैश्विक व्यवस्था को बहुध्रुवीय बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
क्या डॉलर कमजोर हो रहा है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि डॉलर अभी भी सबसे मजबूत वैश्विक मुद्रा है। लेकिन ब्रिक्स देशों के प्रयासों ने एक नई बहस को जन्म दिया है।
इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स के डॉक्टर फ़ज़्ज़ुर्रहमान कहते हैं, “डॉलर की स्थिति फिलहाल मजबूत है, लेकिन वैकल्पिक मुद्रा पर चर्चा का शुरू होना अपने आप में बड़ी बात है।”
विश्लेषकों का कहना है कि ब्रिक्स की कोशिशें अमेरिका के लिए चुनौती बन सकती हैं, हालांकि फिलहाल यह ज्यादा प्रभावी नहीं है।
अमेरिका की स्थिति और आगे की राह
ट्रंप का बयान यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका अपनी मुद्रा और अर्थव्यवस्था की ताकत को बनाए रखने के लिए आक्रामक रवैया अपनाएगा। लेकिन ब्रिक्स देशों का वैकल्पिक वित्तीय नेटवर्क बनाने का प्रयास एक संकेत है कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में बदलाव की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं।
ट्रंप ने भले ही यह चेतावनी दी हो, लेकिन ब्रिक्स देशों की मुद्रा संबंधी पहलों को रोक पाना इतना आसान नहीं होगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ब्रिक्स डॉलर की ताकत को चुनौती दे पाता है या यह केवल एक चर्चा तक सीमित रह जाता है।”
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