मिथिलांचल की दिवाली में ‘हुक्का-पाती’ की अनोखी परंपरा, लक्ष्मी-गणेश पूजा
मिथिलांचल में हुक्का-पाती की अनोखी दिवाली परंपरा, लक्ष्मी-गणेश पूजा के साथ निभाई जाती है रस्म
Samastipur : मिथिलांचल में दिवाली का त्यौहार परंपराओं से जुड़ा हुआ है, जिसमें सबसे प्रमुख है “हुक्का-पाती” की रस्म। इस क्षेत्र में दिवाली का पर्व केवल दीप जलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इस विशेष परंपरा के साथ इसे संपन्न माना जाता है। “हुक्का-पाती” की परंपरा दरअसल मां लक्ष्मी के स्वागत और दरिद्रता को दूर करने का प्रतीक मानी जाती है। बाजारों में हुक्का-पाती की जमकर बिक्री होती है, रामबाबू चौक, गणेश चौक, स्टेशन रोड, भोला टॉकीज चौक जैसे प्रमुख स्थानों पर इसे खरीदने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी रहती है।
इस परंपरा के बारे में बुजुर्गों का मानना है कि यह पूर्वजों को सम्मान देने से भी जुड़ी है। परंपरा के अनुसार, दिवाली की शाम में घर के सभी सदस्य स्नान कर, मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करने के बाद पूजा घर के दीये से “हुक्का-पाती” में आग सुलगाते हैं। इस आग को लेकर परिवार के सदस्य घर के प्रत्येक दरवाजे पर रखे दीयों में लगाते हैं और “लक्ष्मी घर, दरद्रि बाहर” कहते हुए मुख्य द्वार से बाहर निकलते हैं। फिर परिवार के सभी सदस्य एकत्र होकर दक्षिण दिशा की ओर हुक्का-पाती को जलाकर पितरों को श्रद्धांजलि देते हैं और पांच बार उसका तर्पण करते हैं।
दिवाली पर रंगोली और घरौंदा भी खुशहाली का प्रतीक माने जाते हैं। पहले रंगोली और घरौंदा मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनाए जाते थे, लेकिन अब थर्मोकॉल से बने घरौंदे 50 से 200 रुपये तक के दामों में बाजार में मिलते हैं। घरौंदे में मिठाई, फूल, खील और बताशे रखकर पूजा की जाती है। इस प्रकार मिथिलांचल में दिवाली का यह त्यौहार सिर्फ रोशनी का नहीं, बल्कि परंपराओं के निर्वाह का भी प्रतीक बनकर आता है, जिसमें सुख, समृद्धि और पूर्वजों के प्रति आस्था की झलक मिलती है।दिवाली क्यों मनाई जाती है ? देखें विडियो