भाषा-साहित्य

विवेकानंद – अमित मिश्र

कविता

वह साधु था
वह सेवक था
परिचय हो उस ज्ञानी से
भारतीय संस्कार दिखाया
भाइ-बहनो की वाणी से

खुद के लिए जीना क्या जीना
यह तो पशु सा समान है
दूसरे के लिए जिया करो तुम
तभी लक्ष्य आसान है
इंसानियत ही बड़ा धर्म है
जिसने यह समझाया था
भारत का वह चीरयुवा
विवेकानंद कहलाया था

सोच से ही कमजोर सब होते
सोच से ही महान बने
ईश्वर तो खुद के भीतर हैं
बाहर क्यूँ अनजान बने?
अपनी ओज भरी वाणी से
जिसने मान बढ़ाया था
स्वामी जिसका नाम व्याप्त वो
विवेकानंद कहलाया था

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नारा दिया युवाओं को जो
उठो, जागो और लक्ष्य गढ़ो
भारतीय दर्शन वेदांत का
नवल पाठ तुम सदा गढ़ो
अल्प आयु में लोक त्याग कर
जो अमरत्व को पाया था
सांप्रदायिक अंतर को मिटाने
विवेकानंद ही आया था

अमित मिश्र, करियन, समस्तीपुर, बिहार

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