श्रृंगनगपतिजयी मानव!
चन्द्र मंगल पग धरे, क्या खोजता है?
मर्त्यजीवन अर्थ खोजो,
व्यर्थ विचरण व्योम में, क्या खोजता है?
लथपथ मनुजता व्यूह में निःशस्त्र एकल;
छिन्न कर दे व्यूह को जो हैं कहाँ अब पार्थ केशव,खोजता है?
बीज शोणित नग्न ताण्डव कर रहा अब;
असुर शोणित सोख ले जो
है कहाँ खप्पर शिवा,कुछ खोजता है?
कर रहा कर क्रूर कलुषित स्वसा शुचि सम्मान को;
कृपाण काली की कहाँ जो कर सके कर क्रूर खण्डित, खोजता है?
शिशु करुण क्रन्दन धरा दिक् व्योम गुञ्जित;
विधा वर्षण सुधा की मनुजता हो पुष्ट मानव तुष्ट जिससे, खोजता है?
श्रृंगनगपतिजयी मानव!
चन्द्र मंगल पग धरे क्या खोजता है?
मोहन झा, कोलकाता.
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